गुरुवार, नवंबर 25, 2010

हमने दो वर्षों में क्या सीखा!

स्लीम विशारद्

मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमले का आज दूसरा साल पूरा हो गया। देश उस हमले की आाज दूसरी बरसी मना रहा है। हमारे देश में बरसी मनाने की पुरानी परंपरा है। इसके तहत कहीं मोमबत्तियां जलाई जा रही हैं तो कोई फोन पर बात करने की अपील कर रहा है। सरकार ने भी पुरे देश में रेड अलर्ड की घोषणा की है। इन सबका मकसद शहीदों को श्रद्धांजलि देना और पीड़ितों को वैचारिक मरहम लगाना है। लेकिन इन सबके पीछे सबसे बड़ा मकसद अपने-अपने हितों को साधना है। असल मुद्दे की तरफ किसी का ध्यान नहीं है या कोई देना नहीं चाहता है। क्या मोमबत्ती जलाने से उस मां को उसका वो बेटा मिल जाएगा जो आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गया। क्या उन मासूम बच्चों को उनके प्यारे पापा मिल जाएंगे जो आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए शहीद हो गए ? या फिर आपकी मोमबत्ती में वो ताकत है कि भविष्य में ऐसे हमले नहीं होंगे।



बड़े शर्म की बात है कि हमले में मारे गए लोगों के परिवार वालों को अभी तक पूरी मदद नहीं मिली। पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला। ये सिर्फ 26/11 के पीड़ितों की हकीकत नहीं है। ये हकीकत दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट के पीड़ितों की भी है। ऐसे न जाने कितने लोग हैं जिनका सब कुछ छिन गया है। लेकिन उनकी मदद के लिए न तो सरकार आगे आई और न ही सामाजिक सेवा के नाम पर कुकरमुत्ते की तरह खुले सामाजिक संगठन, और न ही जन सेवा का दम भरने वाले राजनीतिक दल। न कोई औद्योगिक घराना आगे आया और न ही बॉलीवुड इंडस्ट्री, जहां करोड़ों की लागत से फिल्में बनती हैं। इस देश में ऐसे औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने दुनियाभर में अपने झण्डे गाड़े हैं, खरबों का निवेश किया है।

लेकिन इन सबके पास कुछ करोड़ रुपये मदद के लिए नहीं हैं। इस देश में अभी इतने भी हमले नहीं हुए हैं कि पीड़ितों की तादत लाखों में हो। पीड़ितों की संख्या महज हजार के आसपास ही होगी। क्या इनकी मदद करने में हम सक्षम नहीं हैं। बॉलीवुड और औद्योगिक घरानों की कुछ हस्तियां तो ऐसी हैं जो मंदिरों में करोड़ों दान करते हैं लेकिन किसी जरूरत मंद के लिए एक फूटी कौड़ी नहीं निकलती। मुंबई देश की बिजनेस कैपिटल है, फिर भी 26/11 के पीड़ितों को मदद नहीं मिली। इससे अधिक शर्मिंदिगी की बात और क्या होगी। जो आतंकी हमले में शहीद हुए, घायल हुए उनकी मदद के लिए कई सौ करोड़ नहीं चाहिए बल्कि कुछ करोड़ चाहिए।

26/11 का दूसरा साल पूरा हो गया। हमने दो साल में क्या कोई सबक सीखा है ? क्या हमारी सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता है ? क्या ऐसे आतंकवादी हमलों को रोक पाने में हम आज सक्षम हैं ? या हमले की स्थिति से निपटने के लिए हम तैयार हैं ? क्या उन कमियों को दूर कर लिया गया है जो दोे साल हमले के वक्त सामने आई थीं ? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब बहुत जरूरी है।



अब समय आ गया है जागने का। इमानदारी से काम करने का। आखिर कब तक हम लोगों को बेवकूफ बनाते रहेंगे। राजनीति बेहतर करने के लिए होनी चाहिए न कि देश को गर्त में पहुंचाने के लिए। हर काम, हर पहल इमानदारी से होनी चाहिए। वरना हम प्रगति नहीं दुर्गति की ओर बढ़ेंगे।


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