शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010
महाकुंभ-2010
विश्व में तीर्थ नगरी के नाम से विख्यात और पतित-पावनी गंगा के पवित्र स्पर्श से समृद्ध हरि-हर की धरती हरिद्वार में महाकुंभ 2010 संपन्न हुआ। दुनिया का विशालतम महाकुंभ अपने पीछे इतिहास की ऐसी आस्थापूर्ण तस्वीर छोड़ गया है, जिसकी छाप लोगों के जहन में अर्से तक रहेगी। आधिकारिक रूप से संपन्न हुए कुंभ के दौरान धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक और लौकिक रीतियों के साथ कुल 107 दिन तक चले महास्नान तथा शाही स्नान में जहां कुल आठ करोड़ 27 लाख 71 हजार लोगों ने गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य कमाया। वहीं कुंभ मेले में लोगों के खरीदारी करने से एक हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कारोबार हुआ।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि हरिद्वार में 107 दिन तक चले महाकुंभ ने अपने इस सफर में कई मील के पत्थर स्थापित किए जो इससे पहले किसी कुंभ में नहीं हुआ था। उन्होंने बताया कि इस महाकुंभ से पहले सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने एक साथ कभी भी स्नान नहीं किया था, लेकिन इस बार सभी अखाड़ों ने पूरी सद्भावना के साथ एकजुट होकर स्नान किया। इस लिहाज से भी यह महाकुंभ ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आधिकारिक तौर पर तीन की जगह चार शाही स्नान होने से इस विशाल धार्मिक आयोजन के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया। शाही स्नान कुंभ की आत्मा माने जाते हैं और लाखों लोग तो केवल शाही स्नान के जुलूस में शामिल संतों और महात्माओं की चरणरज लेने के लिए ही आते हैं। शाही जुलूस गुजर जाने के बाद लोग बहुत श्रद्धा के साथ उस रास्ते की धूल अपने माथे पर लगाते हैं।
निशंक ने कहा कि महाकुंभ के इतिहास में पहली बार हरिद्वार महाकुंभ के दौरान आधिकारिक तौर पर दुनिया के 140 देशों के लोगों ने इसमें न सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि इस आयोजन पर शोध, फिल्मांकन, वृत्त चित्र निर्माण तथा लेखन का काम भी किया। उन्होंने कहा कि 130 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले महाकुंभ क्षेत्र में स्नान के दौरान एक भी व्यक्ति डूबकर नहीं मरा। यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आखिरी शाही स्नान के दिन हरिद्वार में एक करोड़ 60 लाख लोग पहुंचे थे, जिनकी गिनती सेटेलाइट के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा की गई थी। इससे पहले दुनिया में कहीं भी एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में लोग आध्यात्मिक और मानसिक संतुष्टि के लिए एकत्र नहीं हुए थे। इस लिहाज से भी यह महाकुंभ ऐतिहासिक रहा। उन्होंने कहा कि अमेरिका से आए विशेषज्ञों ने इसे विलक्षण इतिहास मानते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मियों ने बिना किसी हथियार और यहां तक कि लाठी के बिना एक दिन में एक करोड़ 66 लाख लोगों को नियंत्रित किया। यह भी ऐतिहासिक बात है। दूसरी ओर, पुलिस उपमहानिरीक्षक आलोक शर्मा ने बताया कि कानून और व्यवस्था की दृष्टि से इस महाकुंभ को आने वाले कई बरसों तक याद किया जाएगा। 107 दिन की मेला अवधि में एक भी आपराधिक घटना नहीं हुई। मेले के दौरान दस हजार से भी अधिक खोए हुए लोगों को उनके परिजनों से मिलाया गया तथा हजारों बुजुर्गो को उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया।
पुलिस उपमहानिरीक्षक ने बताया कि कुंभ के दौरान करीब 20 हजार सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना, प्रबंधन करना, भीड़ के समय धैर्य बनाए रखना और लोगों को सहायता पहुंचाना दुरूह कार्य था, लेकिन इस कुंभ के दौरान इसे सकुशल संपन्न किया गया।
मेलाधिकारी आनंद वर्धन ने बताया कि कुंभ के दौरान मुख्य रूप से खाद्य आपूर्ति, चिकित्सा, पेयजल, विद्युत आपूर्ति, अग्निशमन तथा लाखों की तादाद में आए संतों और महात्माओं के लिए पूरे सम्मान के साथ उनका स्नान सफलता पूर्वक संपन्न कराया गया और इस पर एक विशेष रिपोर्ट जल्द ही तैयार कर मुख्यमंत्री को सौंपी जाएगी।
महाकुंभ के दौरान आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जहां करीब 20 हजार पुलिस और सुरक्षाकर्मी दिन और रात तैनात किए गए थे वहीं 10 हजार सफाईकर्मियों ने पूरे 107 दिनों तक 130 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को साफ सुथरा बनाए रखा जिससे किसी प्रकार की बीमारी नहीं फैली। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मेले के लिए चार अरब 50 करोड़ रुपये खर्च किए गए और इसकी तैयारी वर्ष 2008 से ही शुरू कर दी गई थी।
बैरागी शिविर के संत स्वामी विष्णुदेवानंद ने बताया कि यह कुंभ आध्यात्मिक और पारंपरिक मायनों से आने वाली सदियों तक याद किया जाएगा, क्योंकि इसी कुंभ से सभी तेरह अखाड़ों के एकजुट होकर कुंभ स्नान करने की परंपरा शुरू हुई है। उन्होंने कहा कि इस कुंभ के दौरान ऐतिहासिक रूप से पांच हजार से भी अधिक नागा संयासी बनाए गए जबकि अन्य शिविरों में सैकड़ों की तादाद में साधु और संयासी के रूप में लोगों ने जीवनयापन का संकल्प लिया।
इस कुंभ के दौरान दस विदेशी संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई, जबकि सैकड़ों की तादाद में विभिन्न देशों के लोगों ने सनातन धर्म के प्रति आस्था दिखाते हुए संयासी जीवन शुरू कर अपने अपने देशों में सनातन धर्म को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लिया। कुंभ के दौरान ही संतों ने ऐतिहासिक रूप से निर्णय लेते हुए गंगा की स्वच्छता और अविरलता बनाए रखने के लिए हर की पौड़ी के पास धरना दिया और सरकार के आश्वासन के बाद धरना समाप्त किया। हरिद्वार में आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पूरे मेले के दौरान कितने रुपये का कारोबार हुआ इसका आकलन करना तो तुरंत संभव नहीं है, लेकिन एक हजार करोड़ से भी अधिक का कारोबार जरूर हुआ होगा।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें