सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

आ भालू मुझे मार

अंगामी जनजाति की लोककथाओं में गैरकरिपु एक ऐसा चतुर पात्र है, जो सदा दूसरों को मूर्ख बनाता है। दूसरों के पैसे से मौज उड़ाना उनको दुख पहुँचाकर खुश होना उसकी आदत थी। ऐसी बातें केवल इसलिए कही गई हैं कि लोग उन्हें पढ़कर सबक लें।गैरकरिपु की लोककथा से गलत सबक सीखने वाले को तो मूर्ख ही कहा जाएगा। आप भी उसकी चालाकी की एक कहानी सुनें। एक बार वह जंगल के रास्ते से जा रहा था। जेब में पैसे खनखना रहे थे। माँ ने व्यापार के लिए पैसे दिए थे। घने जंगल के बीचों-बीच उसके सामने एक भालू आ खड़ा हुआ। उसे देखते ही गैरकरिपु को नानी याद आ गई पर उसने हिम्मत नहीं हारी। देखते-ही-देखते भालू और गैकरिपु में भयानक युद्ध छिड़ गया। कभी भालू का वार खाली जाता तो कभी गैकरिपु जमीन पर पछाड़ खाता। इस लड़ाई में गैकरिपु के पैसे जमीन पर बिखर गए। इसी बीच एक और राहगीर वहाँ से गुजरा। उसने दोनों की लड़ाई देखी तो घोड़ा रोककर पूछा-'अरे भई, आपस में क्यों लड़ रहे हो?Ó उसकी बात सुनते ही गैकरिपु को हँसी आ गई-'भला यह भी कोई पूछने की बात है? जंगली भालू से लड़ेंगे नहीं तो वह मार नहीं देगा?Ó पर उसने बात बनाई-'इस भालू ने शर्त रखी है कि जो भी उससे लड़ेंगे, यह उसे ईनाम में पैसे देगा। यह तो देखो, मेरे लिए जमीन पर पैसे बिखरे पड़े हैं। कहकर उसने पैसे दिखला दिए।लालची राहगीर भी कम मूर्ख न था। वह शान से घोड़े से उतरा और भालू का ध्यान अपनी ओर खींचा। गुस्से से पागल भालू उसकी ओर लपका। गैकरिपु ने फटाफट जमीन से पैसे बटोरे। राहगीर के घोड़े पर सवार हुआ और यह जा, वह जा, गायब हो गया। राहगीर पैसों के लालच में भालू से लड़ता रहा और जख्मी होता रहा। भला बताइए, क्या राहगीर के लालच ने ही उसे जोखिम में नहीं डाला? यदि वह चुपचाप चला जाता या फिर गैकरिपु की सहायता करता तो ठीक था, पर उसने तो लालच में आकर अपना घोड़ा भी गँवा दिया और परेशानी भी मोल ले ली। तो हमने गैकरिपु की कथा से शिक्षा ली कि लाख उकसाने पर भी लालच नहीं करना चाहिए वरना राहगीर की तरह ही बुरा हाल होता है।

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