गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010
ठगों के साथ ठगी
एक ठग था। उसके चार पुत्र थे। उसके ये पुत्र भी अपने पिता के समान ही ठग विद्या में पारंगत थे। इस प्रकार ठगों की कुल संख्या पांच होती थीे। एक दिन पांचों ठग बैठे-बैठे किसी को ठगने की योजना बना रहे थे। तभी उन्हें दूर से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। वह आदमी अपने साथ एक काला बैल लिए था। उस आदमी को देखकर ठगों ने उसी को ठगने का विचार किया। योजनानुसार एक ठग वहीं बैठ गया, और चारों ठग थोड़ी दर जाकर बैठ गए। जब काले बैल को लेकर वह व्यक्ति निकला, तब पहले वाले ठग ने पूछा कि -बैल कितने रुपए का है? उस आदमी ने कहा कि -पांच सौ रुपए का है।इस पर ठग ने कहा - यह तो बहुत बड़ी कीमत है। वाजिब दाम बताओ। हम अच्छे दाम पर बैल ले लेंगे।उस आदमी ने कहा - आप कितने में लेना चाहते हैं? तब ठग ने कहा - यह तो पांच रुपए का बैल है। यदि तुम्हें पसंद हो तो दे दो। अगर विश्वास नहीं है, तो आप उन चारोंं से भी पूछ सकते हैं कि दाम वाजिब है या नहीं। तब बैल वाले ने सोचा चलो ठीक है। उन चार लोगों के पास ही चलते हैं। वह पांचवां ठग उस बैल वाले को अपने इन चारों साथियों के पास ले आया।
चारों ठगों ने इन दोनों की बातें सुनी और कहा कि यह बैल पांच रुपए से अधिक का नहीं है। इसलिए अच्छा है कि तुम अपना बैल पांच रुपए में ही दे दो।
इस प्रकार सभी ने मिलकर और उसे अपनी बातों में लेकर उस व्यक्ति को पांच रुपए में ही ठग लिया। जब बैल वाले का बैल चला गया और उसे इस बात का पता चला कि ये पांचों ठग थे, तो उसे बहुत दुख हुआ,पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने निर्णय लिया कि वह उन ठगों को अवश्य ठग कर ही रहेगा। वह स्वयं भी एक ठग था। धोखा खाए हुए ठग ने बाजार से एक साड़ी और साज-श्रृंगार का सामान लिया। साड़ी पहनकर तथा संपूर्ण श्रृंगार कर वह उन ठगों के घर से थोड़ी दूरी पर जाकर रोने लगा। जब उसके रोने की आवाज इन ठगों ने सुनी, तो वे तुरंत उसके पास आए।उन्होंने देखा कि एक सुंदर स्त्री रो रही है। उसे रोता हुआ देखकर उन्हें दया आ गई। उन्होंने पूछा - तुम रो क्यों रही हो?तो उस स्त्री बने ठग ने कहा कि मैं अब क्या करूं क्योंकि मेरे पतिदेव ने मुझे छोड़ दिया है। अब मैं कहां जाकर रहूं। यह सुनकर एक ठग बोला कि अगर आपकी इच्छा हो तो आप हम लोगों के पास रहने लगें। वह ठग इतना ही चाहता था। इस प्रकार वह स्त्री बना ठग उन पांचों ठगों के पास रहने लगा।एक दिन चारों ठग बाहर गए हुए थे। घर में केवल ठगों के पिता ही बचे थे। तो उस स्त्री बने हुए ठग ने कहा - आप लोग तो बिल्कुल गरीब हैं। आपके घर में कुछ भी नहीं है। सुनकर ठगों के पिता ने कहा - तू क्या जाने मेरे पलंग के चारों पाए के नीचे सोने से भरे हुए चार कलश रखे हुए हैं।
स्त्री ने कहा - ऐसी बात है। ठग बोला -हां बिल्कुल ऐसी ही बात है।फिर क्या था। वह स्त्री का रूप बदलकर अपने वास्तविक रूप में आ गया। तुरंत बाहर आ गया। और एक लाठी ले आया। उसने ठगों के पिता की खूब मरम्मत की, और एक कलश निकालकर चल दिया। कुछ देर बाद वे चारों ठग आए। जब उन्होंने अपने पिता की यह हालत देखी, तो उन्होंने पूछा कि पिताजी यह सब किसने किया।
पिता ने कहा कि - यह सब उस स्त्री ठग ने किया है जो काले बैल वाला है। उसने कहा भी है कि वह कल फिर आएगा। ठगों ने जैसे ही अपने पिता की बात सुनी, वे बहुत क्रोधित हुए और कहने लगे कि हम कल कहीं नहीं जाएंगे। बेचारे ठग दूसरे दिन घर पर ही रुके रहे। दूसरे दिन एक आवाज सुनाई दी। उसकी आवाज से लगता था कि वह आवाज किसी वैद्य की है।उन चारों ठगों ने सोचा कि उस वैद्य को बुलाया जाए और अपने पिताजी की दवाई कराई जाए। उन्होंने वैद्य को बुला लिया। वैद्य ने आते ही ठगों के पिताजी को देखा और कहा कि चोट बहुत गहरी है। इसके लिए कुछ जड़ी-बूटियों की आवश्यकता होगी, जो मेरे पास नहीं है। यदि आप चाहें तो उन जड़ी-बूटियों को ला सकते हैं। ठग पुत्रों ने कहा - हम ला सकते हैं। वैद्य ने उन्हें चारों दिशाओं में अलग-अलग भेज दिया। इस प्रकार वह अपनी दूसरी चाल में भी सफल हो गया। घर में अब ठगों के पिता के पास केवल वैद्य ही रह गया था। उसने वही प्रक्रिया दुहराते हुए ठग-पुत्रों के पिता की फिर से अच्छी मरम्मत कर डाली और एक सोने से भरे कलश को निकालकर ले गया।कुछ देर बाद जब चारों ठग पुत्र आए, तो उन्हें देखते ही सारी वस्तु-स्थिति का पता चल गया। वे कहने लगे कि हम कल कहीं नहीं जाएंगे। देखते हैं कि काले बैल वाला ठग कैसा है? वे चारों बैठे ही थे कि तभी उन्हें सुनाई दिया कि काले बैल वाला आ गया हूं। इतना सुनते ही वे चारों उसे पकडऩे के लिए दौड़े। परंतु वह तो घोड़े पर बैठा था। उसने ऐड़ लगाकर सरपट दौड़ लगा दी। चारों ठग कम नहीं थे। वे भी घोड़े का पीछा करने लगे। कुछ देर बाद जब थक गए, तो वापस अपने घर की तरफ लौट पड़े। जब घर आकर देखा तो एक कलश फिर से उखाड़ लिया गया था।
पिता ने बताया कि जिसका तुम लोग पीछा कर रहे थे, वह काले बैल वाला व्यक्ति नहीं था। बल्कि काले बैल वाले ने ऐसा पढ़ा-लिखाकर उसे भेजा था, ताकि तुम लोग यहां से भाग जाओ, और हुआ भी यही। जब तुम चारों भाग गए, तो वह आया। उसने मुझे खूब पीटा और एक कलश फिर से निकाल ले गया। यह सुनकर ठग पुत्रों को बहुत गुस्सा आया और कहने लगे कि कल हम नहीं जाएंगे। चौथे दिन चारों घर पर ही रहे, किंतु कोई नहीं आया। उसी रात उस मुहल्ले में कोई कार्यक्रम हो रहा था। ठगों ने सोचा कि चलो-चलकर देखते हैं कि कौन सा कार्यक्रम हो रहा है।
चारों कार्यक्रम देखने पहुंच गए। इधर काले बैल वाले ने अवसर पाकर पिता ठग की मरम्मत कर डाली। उसका चौथा कलश भी निकाल ले गया। ठग-पुत्र जब वापस आए तो उन्होंने देखा कि पिता की हालत बहुत गंभीर है। अब ठग-पुत्र थककर रोने लगे। उन्हें कुछ भी सूझ नहीं रहा था। उनके पिता ने कहा कि बेटे वह काले बैल वाला अब कभी नहीं आएगा। अब तुम लोग भी कसम खाओ कि कभी किसी को ठगोगे नहीं। क्योंकि बुरे काम का अंत सदैव बुरा ही होता है। ठग पुत्रों ने उस दिन से कसम खाई कि वे अब किसी को नहीं सताएंगे।
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