मुरादाबाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश (यूपी) में सियासी जिंदगी को खास बनाने के लिए सभी दल बेचैन हैं। यहां तक कि कभी मुस्लिम वोटों की फिक्र नहीं करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी। समाजवादी पार्टी (सपा) ने इसके लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया है, तो भाजपा, सपा के इसी दांव के फेल होने में अपनी जीत देख रही है। नतीजा सपा अपने सबसे मजबूत मुस्लिम चेहरे आजम खां की तरकश में सारे तीर डालती जा रही है तो भाजपा संगठन भी नकवी की राह आसान करने के लिए कई खास कदम उठा रहा है। सो, दोनों दलों के साथ इन दोनों मुस्लिम चेहरों की परीक्षा भी होनी है, जिसका परिणाम सपा-भाजपा की मुस्लिम सियासत पर गंभीर प्रभाव डालेगा।
बात आजम और नकवी की इसलिए कि ये दोनों जहां अपने-अपने दल के मुस्लिम चेहरे हैं, वहीं इनका सियासी क्षेत्र रामपुर देश में सर्वाधिक मुस्लिम मतों का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही, रामपुर के पड़ोस में सबसे अधिक मुस्लिम मतों की लोकसभा सीटें हैं। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस समय देश में 35 सीटें ऐसी हैं, जिनमें मुस्लिम आबादी तीस फीसद से ज्यादा है। इसमें से सर्वाधिक सीटें पश्चिम बंगाल में हैं तो दूसरे नंबर पर सबसे अधिक सीटें उत्तर प्रदेश में हैं। यूपी में भी सबसे ज्यादे मुस्लिम बाहुल्य सीटें वेस्ट यूपी के मुरादाबाद-बरेली मंडल में हैं। इन सीटों में बरेली, बदायूं, पीलीभीत, रामपुर, सम्भल, अमरोहा, मुरादाबाद व बिजनौर जैसी सीटें भी हैं, जहां का मुस्लिम मत मुस्लिम सियासत के रास्ते तय करता है।
इसी राह में खुद की पैठ बनाने के लिए डेढ़ दशक से भी पहले भाजपा ने मुख्तार अब्बास नकवी के रूप में अपनी चाल चली। तब नकवी रामपुर के सांसद तो बन गए, लेकिन संगठन का खुला सहयोग न मिल पाने के कारण अगल-बगल की मुस्लिम सीटों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। इस बार संगठन ने उनको मजबूत करने की रणनीति बनाई है। सूत्रों की माने तो भाजपा हिंदूवादी नेताओं को इस क्षेत्र के हर मुस्लिम परिवार में भेजने जा रही है। साथ ही, इन क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर जनसभा आयोजित करने की तैयारी है, जिसमें नकवी खुले मंच से भाजपा की बात रखेंगे। भाजपा की इस रणनीति में सपा की हार में उसकी जीत है।
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वह यह नहीं चाहती है कि मुसलमान सपा या किसी एक के पक्ष में गोलबंद हों। वे भाजपा को वोट दे या न दें, लेकिन सपा के पक्ष में न जाएं, जैसा कि गुजरे लोक सभा चुनाव में हुआ। सभी आठ सीटों में से दो पर सपा, दो पर कांग्रेस और दो पर रालोद व एक पर भाजपा और बसपा ने जीत दर्ज की थी। इसके ठीक उलट सपा इन सभी सीटों पर अपना दमखम दिखाना चाहती है। इसीलिए सपा इस चुनाव में आजम के सामने नतमस्तक हैं।
हालत यह है कि आधा दर्जन बार जहां प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव अपने उड़न खटोले से आजम खां को उनके घर छोड़ने जा चुके हैं, वहीं रामगोपाल यादव द्वारा पूरी ताकत से विरोध करने के बाद भी सम्भल में आजम के प्रत्याशी बर्क को टिकट थमाया गया। इससे सपा ने यह साफ संकेत दे दिया है कि यह समूचा क्षेत्र वह आजम खां को सौंप चुकी है। ऐसे में इन दोनों चेहरों का उपक्रम ही इस क्षेत्र की मुस्लिम सियासत को एक नई राह देगा तो परिणाम इनकी भी राह तय करेगा। आजम हारे तो नकवी जीते और नकवी जीते तो आजम हारे।
दोनों को आजमाने के अलावा दोनों ही दलों के पास कोई दूसरा चेहरा नहीं है। ऐसे में दोनों की सक्रियता केवल इसी क्षेत्र में नहीं, बल्कि समूचे यूपी की मुस्लिम सियासत में अपना प्रभाव छोड़ेगी और तय करेगी भाजपा व सपा की सियासी राह।
मुख्तार अब्बास नकवी:
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व राज्यसभा सांसद। वर्ष 1998 में यहां रामपुर से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत गए। वह भाजपा के टिकट पर पहले मुस्लिम सांसद बने। देशभर में उनसे पहले कोई भी मुसलमान भाजपा के टिकट पर सांसद नहीं चुना गया था। केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद 1999 और 2009 में भी रामपुर से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इस बार फिर रामपुर से ही चुनाव लड़ने की संभावना है।
मोहम्मद आजम खां:
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। प्रदेश में जब भी सपा की सरकार बनी आजम खां भी कैबिनेट मंत्री बने। इस समय अखिलेश सराकर में सात विभागों के मंत्री हैं। 1977 में पहली बार रामपुर शहर से विधानसभा चुनाव लड़े। पहला चुनाव हार गए, लेकिन इसके बाद 1980, 85, 89, 91 और 93 में लगातार चुनाव जीते। 1996 में हार गए तो सपा ने उन्हे राज्यसभा सदस्य बना दिया। 2002 से अब तक आठ बार विधायक चुने जा चुके हैं।
2009 में
-मुरादाबाद: कांग्रेस
-बरेली: कांग्रेस
-अमरोहा: रालोद
-बिजनौर: रालोद
-रामपुर: सपा
-बदायूं: सपा
-सम्भल: बसपा
-पीलीभीत: भाजपा
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