मंगलवार, मार्च 11, 2014

अमर-जया के रालोद में आने से चमका अजित का चेहरा

मुरादाबाद। अवसर व लक्ष्य देख निशाना साधने में माहिर छोटे चौधरी ने फिर कमान से सियासी तीर छोड़ सबको भौंचक कर दिया है। इस बार वह एक तीर से कई निशाना साधने जा रहे हैं। पश्चिम में ढीली पड़ी पकड़ को मजबूत करने के साथ ही उन्हें यहां एक जिताऊ चेहरे की जरूरत थी। जयाप्रदा के आ जाने से जहां यह कमी पूरी हो गई है, वहीं अमर सिंह के सहारे पूरब की खो सी गई जमीन को हरा भरने करने की भी उम्मीद बढ़ गई है। उनकी उम्मीद पर अमर व जया कितना खरा उतरेंगे यह तो बाद की बात है, लेकिन दो चेहरों की पार्टी रालोद को फिलहाल तो दो चेहरे ऐसे मिल गए हैं जो चुनाव में चर्चा के केंद्र बिंदु होंगे।
हाल में जारी होने वाले रालोद के विज्ञापनों को गौर से देखें तो बिल्कुल साफ हो जाता है कि उसके पास चेहरे नहीं हैं। जो हैं उनमें अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत हैं। ऐसे में इस पार्टी को चेहरों की जरूरत थी, जो प्रदेश व देश में जाना-पहचाना जाता हो। साथ ही, पार्टी के विस्तार को वेस्ट से ईस्ट तक आकार दे सकता हो। इस लोकसभा चुनाव में रैलियों के लिए ही सही चेहरा बन सकता हो। अमर सिंह और जयाप्रदा इस खाके में फिट बैठते हैं। अमर सिंह को जहां तोड़-तोड़ का मजा खिलाड़ी माना जाता है, वहीं खास चेहरों में जयाप्रदा शुमार हैं। बात अमर सिंह की करें तो सपा में रहते हुए जहां उन्होंने प्रदेश की सियासत को करीब से जाना हैं, वहीं सपा छोड़ने के बाद उन्होंने सपा को तोड़ने और लोकमंच को जोड़ने में भी अपनी काबिलियत दिखाई है। इस बीच, सपा के कई लोग अमर के साथ आए तो अमर सिंह ने इलाहाबाद से लेकर गोरखपुर तक की यात्रा निकाल पूर्वाचल राज्य का मुद्दा गरमाया। इस बीच बनारस, इलाहाबाद, गोरखपुर व आजमगढ़ में सांकेतिक तौर पर ही सही अमर सिंह के साथ भीड़ दिखी और अमर सिंह में उनकी नब्ज को पकड़ने की छटपटाहट। इन इलाकों में अजित सिंह की सांगठनिक पकड़ भी रही है, भले ही वह चौधरी चरण सिंह के नाम ही रही हो। पूरब का फैजाबाद व बस्ती मंडल आज भी रालोद की तरफ देखता है, लेकिन इस दल के पास वह लोग नहीं हैं, जो यहां की आवाम को सियासी सपना दिखा सकें। हां, इसमें अमर सिह माहिर हैं। सो, रालोद अब पूरब की पुरानी जमीन को हराभरा करने का प्रयास भी करेगी। बदले में अमर सिंह पूर्वाचल राज्य का मुद्दा फिर गरमाएंगे, जो अजित सिंह के छोटे राज्य के सिद्धांत में फिट बैठता है और सपा के सामने मुश्किल खड़ा कर जवाब मांगता है।
बात लोकसभा चुनाव की करें तो कांग्रेस ने रालोद को आठ सीटें ही दी हैं। पश्चिम की ये सीटें अजित के लिए चुनौती बनी हुई हैं। इनमें से 5 पर वह पिछले चुनाव में विजयी रहे हैं, जिसमें से एक सीट पर वह खुद और दूसरे पर उनके पुत्र जयंत सांसद हैं। शेष सीटों में से दो अमरोहा व बिजनौर की है। इनमें से अमरोहा के सांसद नागपाल अब सपा में हैं, बिजनौर के सांसद संजय चौहान पर भी रालोद को पूरा भरोसा नहीं था। ऐसे में इन सीटों के लिए रालोद को दमदार प्रत्याशियों की जरूरत थी। जयाप्रदा के मिल जाने से वह अब बिजनौर सीट को पक्का मान रही है, जिस पर सपा की पैनी नजर है। माना जा रहा है कि अमरोहा सीट पर भी अमर सिंह का ही कोई आयातित प्रत्याशी होगा। इस बीच, रालोद अपनी उपलब्धियों जाट आरक्षण व एयर पोर्ट निर्माण से बने महौल को भुनाने व हरित प्रदेश का मुद्दा गरमाने के लिए मजबूत प्रचार तंत्र बनाना भी चाहता है, जिसके लिए अमर व जयाप्रदा को वह कारगर मान रहा है।
सियासी अतीत:
फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा 2004 में रामपुर आईं और समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुनाव लड़ीं। तब नगर विकास मंत्री आजम खां उनके साथ थे। उन्होंने पूरी लगन से जयाप्रदा को चुनाव लड़ाया। वह चुनाव जीत गईं, लेकिन चुनाव के कुछ माह बाद ही आजम खां और जयाप्रदा के बीच दूरियां बढ़ गईं। दोनों के बीच खाई इतनी बढ़ी कि 2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खां ने जयाप्रदा का विरोध किया, लेकिन जयाप्रदा चुनाव जीत गईं। इसके बाद आजम खां को पार्टी विरोधी गतिविधियों में सपा से निकाल दिया गया।
इसके कुछ माह बाद ही जयाप्रदा व अमर सिंह को सपा से निकाल दिया गया और आजम खां को पार्टी में ले लिया गया। इसके बाद अमर सिंह और जयाप्रदा ने राष्ट्रीय लोक मंच बनाया। विधानसभा चुनाव में इसे आजमाया, लेकिन यह मंच चल नहीं पाया। इसके बाद से ही अमर सिंह व जयाप्रदा के दूसरी पार्टी में जाने की चर्चा शुरू हो गई थी। शुरू में बात उड़ी कि वह रामपुर से ही कांग्रेस से लड़ेंगी। बाद में खबर आई कि वह मुरादाबाद में कांग्रेस में चुनावी भाग्य आजमाएंगी।
जया प्रदा खुद भी कहती रहीं हैं कि वह शीघ्र किसी पार्टी में शामिल होंगी और उसी से चुनाव लड़ेंगी। पर, इन कयासों से दूर उन्होंने रालोद की राह पकड़ी। शायद इसलिए भी कि रालोद में जहां उनके गाडफादर अमर सिंह को जगह मिली गई, वहीं बिजनौर की जमीन मुरादाबाद से कहीं अधिक महफूज है। वहां रालोद का भी जनाधार है, जाट आरक्षण है, जबकि मुरादाबाद में कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: