अलीगढ़/पिसावा देश की आजादी की जंग में अहम भूमिका निभाने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अलीगढ़ के पिसावा क्षेत्र के गांव शादीपुर में नौनिहालों को क्रांति का पाठ पढ़ाया था। सांडर्स की हत्या के बाद ब्रिटिश हुकूमत को चकमा देते हुए शहीद भगत सिंह कानपुर से अलीगढ़ के पिसावा के शादीपुर गांव पहुंचे थे।
ब्रितानिया हुकूमत से पहचान छिपाने के लिए इस क्रांतिदूत को बलवंत सिंह नाम मिला। उनके लिए गांव में प्राइमरी स्कूल खोला गया। वे शादीपुर में बच्चों को पढ़ाते तो थे, लेकिन उनमें देशभक्ति का तड़का लगाना भी नहीं भूलते थे। गांव में गुजरा वह दौर देखने वाले वो लोग इस समय जिंदा तो नहीं बचे, लेकिन देश के लिए फांसी के फंदे को चूमने वाले भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को 23 मार्च को याद करना नहीं भूलते हैं।
सरदार भगत सिंह से अलीगढ़ का रिश्ता बनाने वाले शख्स थे शादीपुर के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर टोडर सिंह। किसी जमाने में अलीगढ़ में जेल रोड का सत्याग्रह आश्रम ब्रिटिश हुकूमत के सफाए की रणनीति बनाने का अड्डा हुए करता था। ठा. टोडर सिंह की मृत्यु 16 दिसंबर, 1972 को हो गई थी। गांव के चौ. लक्ष्मण सिंह बताते हैं सरदार भगत सिंह को लाला लाजपत राय की मौत का गहरा सदमा लगा था। उनकी मौत का बदला चुकाने के लिए सांडर्स की हत्या कर दी। पुलिस भगत सिंह के पीछे पड़ी तो कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास आ गए। यहां पर पु़लिस का खतरा बढ़ा तो 1928 में ठा. टोडर सिंह ट्रेन से उन्हें अलीगढ़ ले आए। सत्याग्रह आश्रम ही उनका ठिकाना हो गया। नए शख्स को देखने के बाद पुलिस की सक्रियता बढ़ी तो उन्हें बालजीवन घुट्टी के मालिक तुलसी प्रसाद के बगीचे में रखा गया। शहीद भगत सिंह को यहां पर भी असुरक्षित लगने पर उन्हें खेरेश्वरधाम मंदिर पर रखा गया, क्योंकि उस समय मंदिर पर भक्तों का आना-जाना कम था। कुछ महीने यहां व्यतीत करने पर उन्हें अधिक खतरा दिखने लगा तो ठा. टोडऱ सिंह ने जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर पैतृक गांव शादीपुर भेज दिया था। उनके दाड़ी-बाल काटे और नया नाम दिया बलवंत सिंह।
ठाकुर साहब ने गांव वालों तथा क्षेत्र के गांवों के लोगों से उनका परिचय कराया मास्टर जी के रूप में। यहीं पर गांव से करीब 300 सौ मीटर दूर बंबे के किनारे स्कूल खोल दिया गया। इसमें गांव के नारायण सिंह महाशय, गांव मढ़ा हबीबपुर के रघुवीर सिंह, जलालपुर के नत्थन सिंह आदि ने पढ़ाई की। यहां शाम को कुश्ती सिखाई जाती थी। छुट्टी के दिन परिचित लोगों के घर जाकर देशभक्ति पर चर्चा करते थे। भगत सिंह यहीं पर रात को साइक्लोस्टाइल मशीन से अखबारनुमा पर्चा बगावत के नाम से छापते थे। करीब 18 महीने वे शादीपुर में रहे। इसी दौरान भगत सिंह ने अपने परिवार से मिलने को ठाकुर साहब से इच्छा जताई तो उन्होंने पत्र लिखकर भगत सिंह की मां विद्यावती, चाचा अजरुन सिंह व स्वर्ण सिंह, शादीपुर बुलवाया। भगत सिंह की मां से ठाकुर टोडऱ सिंह ने उनके जन्म के विषय में बताया कि उसका जन्म शनिवार 18 अक्टूबर की सुबह 1907 में पांच औरतों के बीच घर पर हुआ था। उसके बाद ठाकुर साहब ने भगत सिंह को खुर्जा जंक्शन तक तांगे से छुड़वाया। फिर कुछ ही दिनों बाद असेंबली में बम फेंका तो उन्हें राजगुरु व सुखदेव के साथ ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया। 21 मार्च, 1931 को ठाकुर टोडर सिंह जेल में भगत सिंह से मिलने गए। दो दिन बाद ब्रिटिश हुकूमत से उन्हें फांसी लगा दी गई। फांसी पर पूरे शादीपुर ग्रामीणों व क्षेत्रीय लोगों ने गहरा शोक मनाया गया। तभी से गांव में 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है।
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