गुरुवार, मार्च 27, 2014

वीपी सिंह की राह पर अरविंद केजरीवाल!

वाराणसी। चुनावी सभा में भीड़ का सम्मोहित होना वक्ता के कद को ऊंचा करता है लेकिन उसे बरकरार रखना उतना ही कठिन। कुछ ऐसा ही दिख रहा है अरविंद केजरीवाल के साथ। मंच से हाथ में कागज लहराना। भ्रष्टाचारियों की सूची जारी करना। बाद में भीड़ की प्रतिक्रिया लेना, अरविंद के ये कुछ ऐसे हाव-भाव हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की याद ताजा कर देते हैं।
मंगलवार को बेनियाबाग की सभा और बुधवार को रोड शो में ये सब लक्षण देखने को मिले। स्मृतियों पर जोर दें तो 1989 में कांग्रेस विरोध के दौर में वीपी सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा का गठन किया। बाद में वह मोर्चा जनता दल में तब्दील होते हुए दिल्ली की गद्दी पर आसीन हो गया। बाकायदा वीपी सिंह प्रधानमंत्री भी बने। इस मुकाम तक आने में वीपी सिंह ने जनभावना की नब्ज पकड़ ली थी। पूरे देश में सभाएं कीं। हर सभा ऐतिहासिक क्योंकि जनता को इंतजार रहता था उन भ्रष्टाचारियों के नाम उजागर होने का। मंच से कागज लहराकर वीपी सिंह बाकायदा घोषणा करते थे कि यह भ्रष्टाचारियों की सूची है। सत्ता में आने के बाद इन्हें जेल भेजना है।
फिर क्या था, तमाम घोटालों से आजिज जनता ने वीपी सिंह को हाथों-हाथ लिया। जनता दल सत्ता में आई और वीपी सिंह प्रधानमंत्री भी बने। दुखद यह कि भ्रष्टाचारियों जेल नहीं भेजे गए। मंच से लहराया जाने वाला कागज मात्र एक टुकड़ा साबित हुआ। वैसे जनता अरविंद केजरीवाल से उम्मीद लगाए हुए है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई किस मुकाम तक पहुंचती है यह भी उन्हीं पर निर्भर है।

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