नई दिल्ली। सरकारी दफ्तरों में जमे भ्रष्टाचारियों के लिए यह एक चेतावनी है। अगर उन पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित हो गए तो उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। उस समय नौकरी से हटाने के अलावा कोई और सजा दिए जाने की उनकी गुहार काम नहीं आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि भ्रष्टाचार के आरोप साबित हो जाने पर नौकरी से हटाना ही एकमात्र सजा है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह बात भ्रष्टाचार में दोषी पाए गए राजस्थान परिवहन विभाग के बस कंडक्टर को नौकरी से निकालने के आदेश पर मुहर लगाते हुए कही है। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया है, जिसमें कंडक्टर को नौकरी से निकाले जाने का परिवहन विभाग का आदेश निरस्त कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान व न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की पीठ ने गत सप्ताह राजस्थान परिवहन विभाग की अपील स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी से हटाए जाने को अपराध के अनुपात में ज्यादा सजा बताने की कंडक्टर की दलील खारिज करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार साबित हो जाने के मामले में एकमात्र सजा नौकरी से हटाया जाना ही है। कोर्ट ने इस मसले पर दिए गए पूर्व फैसलों का भी हवाला दिया है। म्यूनिसिपल कमेटी बहादुरगढ़ बनाम कृष्ण बिहारी के फैसले में भी कोर्ट ने कहा था कि भ्रष्टाचार के मामले में नौकरी से हटाए जाने के अलावा दूसरी सजा हो ही नहीं सकती।
भ्रष्टाचार का मौजूदा मामला 26 साल पुराना है। 1988 में बजरंग लाल राजस्थान परिवहन निगम में ट्रेनी कंडक्टर था। कोटा-राजपुरा रूट पर उसकी बस की चेकिंग हुई, जिसमें 10 सवारियां बिना टिकट पाई गईं। बजरंग ने सवारियों से किराये का पैसा ले लिया था लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिए थे। इसके बाद एक दिन कोटा-नीमच रूट पर फिर उसकी बस की चेकिंग हुई जिसमें दो सवारियां कम किराये पर यात्रा करती मिलीं। सवारियों से किराया पूरा लिया गया था लेकिन उन्हें टिकट कम किराये की दी गई थी। दोनों मामलों में बजरंग के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच हुई। आरोप साबित होने पर बजरंग को नौकरी से निकाल दिया गया। बजरंग ने नौकरी से निकाले जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने आदेश निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ परिवहन विभाग सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
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