सोमवार, फ़रवरी 24, 2014

फिर यू-टर्न: बेटे ने समझाया- मोदी की लहर है और मान गए रामविलास, सात सीटों पर हो रही 'डील'

नई दिल्‍ली. दलितों के नाम पर राजनीति करने वाले दो बड़े नेता बीजेपी का दामन थामने जा रहे हैं। सोमवार को दलितों के नेता उदित राज बीजेपी में शामिल होने वाले हैं। बीजेपी में शामिल होने जा रहे उदित राज का कहना है कि अब हमें लगता है कि कम से कम दलितों के लिहाज से आज बीजेपी सबसे अच्‍छी पार्टी है। कांग्रेस की सरकार केंद्र में दस साल से है, लेकिन इस दौरान दलितों के लिए कुछ नहीं हुआ। अटल जी की सरकार में दलितों के लिए जो अच्‍छे काम हुए थे, उसे पिछले दस साल में आगे नहीं बढ़ाया जा सका। 
 
दूसरी ओर, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता रामविलास पासवान भी एनडीए का दामन थाम सकते हैं। बताया जा रहा है कि उनके बेटे चिराग पासवान ने उन्‍हें समझाया कि तमाम सर्वे में मोदी की लहर बताया जा रहा है और कांग्रेस की हालत खस्‍ता बताई जा रही है। इसके बाद वह एनडीए से समझौते पर राजी हो गए।
 
पलड़ा भारी देख रुख बदलते रहे हैं पासवान
लोजपा अध्‍यक्ष पासवान ऐसे नेता हैं जो 1989 से 2009 तक लगभग हर गठबंधन सरकार में शामिल रहे और मंत्री पद का भी लाभ उठाया। वह 8 बार लोकसभा सांसद रहे और अभी राज्‍यसभा में हैं। मौजूदा लोकसभा में उनकी पार्टी का एक भी सदस्‍य नहीं है। 
लोजपा के बारे में माना जा रहा है कि भाजपा से उसकी बातचीत अंतिम चरण में है। बताया जा रहा है कि सीटों की संख्‍या (सात) तक पर सहमति बन गई है। अब केवल यह तय होना है कि लोजपा को दी जाने वाली सात सीटें कौन सी होंगी।
 
कहा जा रहा है कि कांग्रेस-राजद के साथ लोजपा का गठबंधन सीटों पर फैसला नहीं होने के चलते ही परवान नहीं चढ़ सका। हाल ही में एबीपी न्‍यूज के सर्वे के मुताबिक लोजपा को बिहार में एक सीट पर जीत मिल सकती है। इस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा की ओर से सात सीटें दिया जाना उसके लिए काफी फायदे का सौदा माना जा सकता है। । 
 
एनसीपी और लालू ने ये कहा
पासवान के मोदी खेमे में जाने की खबर पर एनसीपी नेता तारिक अनवर ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो यह इस देश की राजनीति की विडंबना हो जाएगी। पासवान ने गुजरात दंगों के लिए मोदी को दोषी बताते हुए एनडीए छोड़ा था। अब अगर वह मोदी के साथ जाते हैं तो यह दुखद होगा। 
 
लालू ने कहा कि रामविलास पासवान के प्रति हमारा कोई दुराव नहीं है। ऐसा होता तो संकेट के दिनों में हम उनकी मदद नहीं करते। 
 लोजपा सूत्रों का कहना है कि पासवान तो यूपीए का हिस्सा बनना चाह रहे थे लेकिन चिराग पासवान और उपाध्यक्ष सूरजभान इस बात के लिए उन पर दबाव बना रहे थे कि एनडीए के साथ जाना पार्टी के लिए बेहतर विकल्प है। 
 
विभिन्न सर्वे का हवाला देते हुए रामविलास को यह तर्क दिया गया कि कांग्रेस के साथ जाने का मतलब है भारी नुकसान उठाना। इन तर्कों के बाद रामविलास का भी मन बदला, जिसके बाद एनडीए के साथ तालमेल बिठाने का काम जारी है। 
 
कांग्रेस-राजद के लिए बड़ा झटका
रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए में शामिल हुई तो कांग्रेस और आरजेडी के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है क्योंकि अब तक लालू, पासवान और कांग्रेस का गठबंधन पक्का माना जा रहा था। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा है कि एनडीए के साथ गठबंधन का अंतिम फैसला पार्टी की बैठक के बाद लिया जाएगा। 
 
कवायद जारी थी
गौरतलब है कि बिहार में लालू, पासवान और कांग्रेस का गठबंधन का औपचारिक ऐलान हो चुका था। इस बीच भाजपा ने भी पासवान को लेकर अपनी उम्मीदें नहीं छोड़ी थीं और दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी। खुद रामविलास पासवान ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से पिछले हफ्ते मुलाकात की थी। बीते शुक्रवार को भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने पासवान के घर जाकर उनसे मुलाकात की और गठबंधन को लेकर बातचीत को आगे बढ़ाया।
 
क्या टूटेगी लालू-पासवान की जोड़ी: पासवान 2004 में यूपीए में शामिल हुए थे। उनके चार सांसद थे, इसलिए कैबिनेट मंत्री भी बने। यूपीए-1 में रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। कुछ समय के लिए पासवान-लालू में संबंध बिगड़े, लेकिन 2008 के अंत तक वे पास आ गए थे। लालू-पासवान 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस से अलग हुए, लेकिन आपस में जुड़े रहे। मिलकर लड़े थे। पासवान खुद हारे। पार्टी का खाता भी नहीं खुला था। इस बार लालू-पासवान लंबे समय से कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश कर रहे थे। पासवान ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। 
 
कैसे बदल गया रुख? 
गुजरात दंगों के बाद 2002 में रामविलास पासवान ने सबसे पहले एनडीए छोड़ा था। ऐसे में वे नरेंद्र मोदी से हाथ कैसे मिला सकते हैं? इस पर सूरजभान ने कहा, ‘जब कोर्ट ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है तो हम कौन होते हैं कुछ कहने वाले।’ वैसे यह भी हकीकत है कि पासवान के निकलने के कुछ ही दिनों में छह पार्टियों ने एनडीए छोड़ा था। जिससे कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए के बनने का रास्ता खुला था। 

अब तक घोषित तौर पर खुद को भाजपा से अलग बताने वाला राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) अब अपने दो हजार कट्टर स्‍वयंसेवकों को भाजपा में शामिल करवाने की योजना बना रहा है। ऐसा दो-तीन साल में करने की योजना है। इसका मकसद भाजपा की वैसी छवि बनाना है जैसी आरएसएस चाहता है।
 
आरएसएस जिला और राज्‍य स्‍तर पर भाजपा में अपने काडर शामिल करवाना चाह रहा है। फिलहाल करीब तीन दर्जन पूर्णकालिक प्रचारक भाजपा में विभिन्‍न स्‍तरों पर संगठन सचिव की भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन, आरएसएस की योजना स्‍थानीय कार्यकर्ताओं को भाजपा में लाने की है। उन कार्यकर्ताओं को जो सैद्धांतिक रूप से समर्पित और ठोस हों। 
आरएसएस ने यह योजना देश भर में अपनी बैठकों में स्‍वयंसेवकों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर बनाई है। बताया जाता है कि इन बैठकों में यह प्रतिक्रिया मिली कि भाजपा नेता पार्टी के काडर की अनदेखी कर अपने बच्‍चों को आगे बढ़ाने में लगे हैं और उन लोगों को टिकट दे रहे हैं जो चुनाव से ठीक पहले पार्टी में आते हैं। 

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