सोमवार, फ़रवरी 24, 2014

तस्करी के लिए तो नहीं लाया गया था तेंदुआ?

मेरठ। पुलिस जब वायरलेस पर अपनी तकनीकि भाषा शैली में लेपर्ड के पहुंचने की सूचना का आदान- प्रदान करती है तो यकीनन आबादी की सजग निगरानी का संदेश पहुंचता है, किंतु रविवार की छुट्टियों में ऐसे लेपर्ड ने शहर में दस्तक दे दी, जिसकी न तो कोई उम्मीद थी, और न ही आवश्यकता। घनी आबादी में जंगली लेपर्ड की गूंज पर प्रदेश वन निदेशालय भी सन्न रह गया। खासकर ऐसे हालत में, जब 2073 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाली हस्तिनापुर सेंचुरी तेंदुआ विहीन घोषित की जा चुकी है। मेरठ में तेंदुए की लगातार दस्तक से निहत्थे वन विभाग के भी होश उड़ गए हैं। किठौर के जड़ौदा के बाद मेरठ के सदर बाजार में दिनदहाड़े तेंदुए की छलांगों ने लोगों को दहशत में ला दिया। बाजार में भीड़भाड़ और रौनक पर खौफ का साया मंडराता रहा। हस्तिनापुर वन्य जीव सेंचुरी 1986 में बनाई गई। इसमें मेरठ, गाजियाबाद, बिजनौर, मुजफ्फरनगर व ज्योतिबाफूले नगर का हिस्सा भी शामिल है। वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 1995 के बाद इस क्षेत्र में तेंदुओं की नियमित उपस्थिति दर्ज नहीं हुई। बिल्ली की सभी 36 प्रजातियों में तेंदुआ चौथी पायदान का रहस्यमयी और शर्मीला प्राणी है। बिल्ली प्रजाति की तीन श्रेणी भारतीय जंगलों में पाई जाती है। चौथी प्रजाति का जीव चीता भारत में 1951 के बाद फिर नहीं देखा गया। भारत-नेपाल सीमावर्ती लखीमपुर खीरी के तराई वन क्षेत्र एवं विन्ध्य व चित्रकूट की पहाड़ियों में कभी बहुतायत में पाए जाने वाले तेंदुओं की तादात तेजी से घटी। वर्ष 1988 में प्रोजेक्ट टाइगर योजना शुरू हुई, किंतु लेपर्ड पर ध्यान नहीं दिया गया। जंगलों में बाघों की आबादी बढ़ने लगी तो तेंदुओं पर शामत भी बढ़ी। बाघों ने जंगल से भगाया, तो रहा सहा आसरा मानव विकास की भेंट चढ़ता गया। मानव आबादी की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति से बड़ी संख्या में तेंदुए मारे गए। मेरठ के जड़ौदा के बाद सदर बाजार में तेंदुआ मिलने से वन विभाग के प्रयासों की कलई खुल गई। विभाग के पास न तो तेंदुओं की संख्या का विवरण है और न ही रेस्क्यू सेंटर। चीफ वार्डेन, वाइल्ड लाइफ डा. रूपक डे का कहना है कि घनी आबादी तक पहुंचना वाकई चौंकाने वाला है। विभाग की वरीयता उसकी जान बचाना है। उसके बाद संभव हुआ, तो जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
लकड़ी के ट्रक में तो नहीं आया?
मौके पर इस बात की भी चर्चा जोरों पर थी कि तेंदुआ आरा मशीन में आने वाली लकड़ी के ट्रक में बैठकर आ गया हो। कुछ लोग तो यहां तक भी दावा करते देखे गए कि उन्होंने बाउंड्री रोड पर स्थित टोल पर तेंदुआ को ट्रक से कूदते देखा। हालांकि आरा मशीन मालिक का कहना है कि उसके यहां बीते डेढ़ माह से लकड़ी ही नहीं आई। टोल पर भी किसी ने ऐसी पुष्टि नहीं की।
तस्करी के लिए तो नहीं लाया गया था तेंदुआ?
'डर' की दस्तक के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि तेंदुआ शहर के बीच में कहां से आया? एक दिन पहले ही गाजियाबाद के मसूरी में तेंदुए की खाल के साथ मगन गिरोह के एक सदस्य को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इस गैंग के सभी सदस्य उत्तराखंड के चमोली के रहने वाले हैं, जो मेरठ जोन में वन्य जीवों की तस्करी करते हैं। जोन की पुलिस मगन की गिरफ्तारी को उसके पीछे पहले से ही लगी हुई है।
महानगर के सदर बाजार में तेंदुआ की दस्तक पुलिस के लिए बड़ा सवाल बनी हुई है। आइजी आलोक शर्मा ने बताया कि गाजियाबाद की मसूरी थाना पुलिस ने उत्तराखंड के चमोली निवासी प्रकाश उर्फ पप्पू को तेंदुए की खाल के साथ गिरफ्तार किया है। हालांकि इस गैंग का सरगना मगन अभी फरार चल रहा है। सभी नौ जनपदों को मगन की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए हैं। पुलिस मानकर चल रही है कि तस्करी के चक्कर में तो तेंदुआ महानगर की आबादी तक नहीं पहुंच गया। पुलिस की मानें तो कहीं तस्कर उसे बेहोश कर शहर में लेकर आ गए हों। बेहोशी टूटने के बाद तस्करों के चंगुल से छूटकर तेंदुआ बाहर आ गया हो। पुलिस इस पूरे मामले को ध्यान में रखकर पड़ताल में जुट गई है। तेंदुए की खाल की कीमत बाजार में 15 लाख रुपये तक है।
तेंदुए की खाल के साथ पकड़े गए तस्कर प्रकाश सिंह उर्फ पप्पू का नेटवर्क मेरठ जोन में फैला है। वन्य जीवों की तस्करी कर उन्हें मारने के बाद खाल को बेचा जाता है। हो सकता है कि मेरठ के बीच में तेंदुआ आना भी इसी गिरोह से जुड़ा हुआ हो।
- धर्मेद्र सिंह, एसएसपी गाजियाबाद
महानगर के बीच में तेंदुआ मिलने की घटना बड़ी है। आशंका है कि तेंदुआ कहीं तस्करी के लिए तो नहीं लाया गया था। तस्करी के अलावा भी तेंदुए के शहर में आने की वजह तलाशी जाएगी।
- आलोक शर्मा, आइजी मेरठ।
कब चेतेगा वन विभाग?बिजनौर क्षेत्र में नरभक्षी बाघिन दस लोगों को निवाला बना चुकी है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी अभी तक बाघिन के पैर के निशान ही ढूंढ रहे हैं। बाघिन को पकड़ने के लिए मानव रहित यंत्र तक मंगाया गया लेकिन उसे भी ठीक से आपरेट नहीं किया जा सका। मेरठ जिले में भी तेंदुए की आहट पिछले कई महीने से है लेकिन वन विभाग के अधिकारी कुंभकर्णी नींद से जागने को तैयार नहीं है। करीब दस दिन पूर्व किठौर क्षेत्र में तेंदुआ पकड़ा गया। इसके बाद भी किठौर और सरधना क्षेत्र के ग्रामीण बराबर वन विभाग और पुलिस को यह सूचना देते रहे कि अभी भी क्षेत्र में तेंदुआ देखा जा रहा है लेकिन वन विभाग ने कोई संज्ञान नहीं लिया। शायद उसी का परिणाम रहा कि रविवार को तेंदुआ शहर में घुस आया और 12 घंटे से अधिक समय तक लोगों की सांसें थमी रहीं। इससे पहले भी जिले में तेंदुआ देखा गया था। कुछ वर्ष पूर्व तो दौराला में सड़क पार करते समय एक तेंदुए की वाहन से कुचलकर मौत तक हो गई थी। सबसे सोचनीय पहलू तो यह है कि अब भी वन विभाग के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे इस तरह की घटनाएं रुक सकें।
मेरठ कैंट के जंगल के रास्ते आया तेंदुआ
चार साल पहले मेरठ के वन संरक्षक रह चुके व वर्तमान में जुहू के निदेशक अनुपम गुप्ता की मानें तो रविवार को सदर बाजार में तेंदुआ मेरठ कैंट के जंगल के रास्ते सदर बाजार में आया होगा। मेरठ देश का एकमात्र ऐसा कैंट क्षेत्र है, जिसकी एक ओर अब्दुल्लापुर सीमा व दूसरी ओर कंकरखेड़ा के पास मेहमतपुर सीमा क्षेत्र में करीब 25 किमी का जंगल यानि हरियाली क्षेत्र है। आम व्यक्ति का प्रवेश इस जंगल में प्रतिबंधित है। वर्ष 1995 में भी मेरठ कैंट क्षेत्र में आया तेंदुआ इसी जंगल से आया था। सदर बाजार में यह तेंदुआ नाले के रास्ते आरा मशीन में इसलिए आया कि नाले में उसे विचरण करते हुए एकांत तो मिला, साथ ही मांस आदि के टुकड़े भी बहते हुए गंदे पानी में उसे मिले होंगे। आरा मशीन में उसने इसलिए प्रवेश किया होगा क्योंकि इस आरा मशीन के पास नाला खुला है और बाहर लकड़ी आदि देख वह एक झटके में अंदर प्रवेश कर गया। दूसरा यह है कि हस्तिनापुर सेंचरी क्षेत्र में विधिक रूप से तेंदुआ नही देखा गया, पर इस क्षेत्र के गंगा खादर क्षेत्र में तेंदुआ बड़ी संख्या में है। उम्मीद है कि गंगा खादर क्षेत्र से भी यह तेंदुआ अब्दुल्लापुर कैंट जंगल के रास्ते सदर बाजार में आया।

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