असम में बीएसएनएल के कमर्चारी नवेंद्र कुमार के खिलाफ 2001 में सीबीआई ने आपराधिक षड्यंत्र रचने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था, जिसके बाद उन्होंने संविधान के तहत सीबीआई के गठन को चुनौती देते हुए अपने खिलाफ दायर एफआईआर को खारिज करने की मांग की थी। हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने डिविजन बेच में याचिका दायर की।
जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस इंदिरा शाह की बेंच सीबीआई के गठन को असंवैधानिक करार दिया और नवेंद्र के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई का गठन निश्चित जरूरत को पूरा करने के लिए 'कुछ समय' के लिए ही गृह मंत्रालय के संकल्प के जरिए किया गया था। वह प्रस्ताव न तो केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही उसके साथ राष्ट्रपति की स्वीकृति का कोई आदेश था। लिहाजा, विवादित संकल्प विभागीय आदेश के अलावा कुछ भी नहीं है।
बेंच ने कहा कि एक अप्रैल 1963 को सीबीआई गठन के नियमों के अनुसार यह न तो दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंट (डीएसपीई) का अंग है और न ही हिस्सा। इसके अलावा डीएसपीई ऐक्ट 1946 के तहत सीबीआई पुलिस फोर्स की तरह व्यवहार नहीं कर सकती है। इन परिस्थितियों में सीबीआई द्वारा किसी युवक के खिलाफ मामला दर्ज करना और उसे गिरफ्तार करना अपराध है।
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