प्रेम व्यक्ति के जीवन में जब आता है तब उसे बहुत धीरे-धीरे एहसास होता है लेकिन जब जाता है तो अपने पीछे एक खालीपन छोड़ जाता है। आज का दौर ना केवल रिश्तों को सावधानी से सहेजने का है, बल्कि रिश्तों में कुछ नयापन लाने का भी है। कैसे रिश्तों में हमेशा ताजगी रहे, नयापन रहे सीखते हैं भागवत से। भगवान श्रीकृष्ण के दाम्पत्य में चलते हैं। 16108 रानियों के पति भगवान कृष्ण के सबसे ज्यादा प्रसंग केवल दो ही रानियों के संग के हैं। पहली रुक्मिणी और दूसरी सत्यभामा। अगर गौर से देखा जाए तो इन दोनों पत्नियों के साथ कृष्ण के सबसे ज्यादा किस्से हैं। इसका कारण था कि इन दोनों रानियों ने कभी अपने रिश्तों में एकरसता नहीं आने दी। रुक्मिणी द्वारिका में राजकाज और प्रजापालन में श्रीकृष्ण के साथ हाथ बंटाती थीं, तो कभी हास्य-विनोद से उनके साथ नितांत निजी क्षण भी बिताती थीं।
वहीं सत्यभामा कई बार श्रीकृष्ण के साथ ही युद्ध या तीर्थ पर निकल जाती थीं। शेष रानियों का अधिकांश जीवन द्वारिका के महलों में ही गुजर गया। सत्यभामा श्रीकृष्ण को लेकर बहुत ही संवेदनशील रहती थी, वो आक्रामक स्वभाव की थी, इसलिए कई बार युद्धों में श्रीकृष्ण के साथ चल देती थीं। आज के युवा दंपत्तियों में एक इसी बात की कमी है। वे साथ तो रहते हैं लेकिन दांपत्य में एकरसता आ गई है। नयापन कुछ भी नहीं रहता। वे पति-पत्नी ही सबसे ज्यादा सुखी रहते हैं जो ना केवल एक-दूसरे को अपना एकांत देते हैं बल्कि कभी-कभी एक-दूसरे की जिम्मेदारियों को भी उठाते हैं। पति-पत्नी सिर्फ सहचर ना रहें, जीवन में सहभागी भी बनें। एक-दूसरे के कामों में हाथ बंटाएं, अपने साथी को लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करें, कभी ये भी देखने का प्रयास करें कि आपका साथी किस स्थिति में संघर्ष कर रहा है। पति-पत्नी जब सहचर से, जीवन के सहभागी बन जाते हैं, तो रिश्ते में रोज एक नयापन दिखाई देता है।
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