। सजा सुनाए जाने के बाद ऊंची अदालत से जमानत लेकर गायब हो जाने की चालबाजी अब नहीं चलेगी। न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाले ऐसे पैंतरेबाज अपराधियों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। कोर्ट ने न्यायाधीशों को आगाह किया है कि वे अपराधियों की सजा से बचने की इन चालों के मूकदर्शक न बने। अपील के दौरान जमानत, या समर्पण से छूट का आदेश ले गायब हो जाने वाले अपराधियों की अपीलें खारिज कर दें।
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर व विक्रमजीत सेन की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को सही ठहराते हुए यह नसीहत दी। हाई कोर्ट ने अपील की सुनवाई पर पेश न होने के कारण उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के सूर्य बख्श सिंह की अपील खारिज कर हत्या के जुर्म में उसे मिली उम्रकैद की सजा पर मुहर लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसे मामले खतरनाक रूप से बढ़े हैं जिनमें सजा होने के बाद दोषी जेल काटने से बचने के लिए अपील दाखिल करते हैं। अपील के दौरान वे जमानत या समर्पण से छूट लेकर जानबूझकर गायब हो जाते हैं।' ऐसे अपराधियों से न्यायाधीशों को सचेत करते हुए कोर्ट ने कहा, 'जज का कर्तव्य है कि किसी निर्दोष को सजा न हो। लेकिन, यह ध्यान भी रखना होगा कि वह अपराधी की सजा से बचने की चालबाजी का मूकदर्शक न बना रहे। अगर अदालत अपने कर्तव्य का पालन करने में चूक गई तो सामाजिक ढांचा छिन्न-भिन्न हो जाएगा और अराजकता व्याप्त हो जाएगी। इसे रोकने के लिए अपीलों का शीघ्र निपटारा जरूरी है। हाई कोर्ट अपने अधिकार के तहत ऐसी अपीलें खारिज कर सकता है। अपील पर सुनवाई के दौरान दोषी या उसके वकील के पेश नहीं होने पर अदालत को तत्काल उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जिसने उसकी जमानत ली हो। इसके बावजूद दोषी पेश नहीं होता तो कोर्ट को अपील खारिज करने का अधिकार है।'
इस मामले में सूर्य बख्श सिंह ने सीतापुर अदालत के उम्रकैद के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दाखिल की और जमानत भी ले ली। अपील 23 साल लंबित रही, लेकिन न तो वह पेश हुआ और न उसका वकील। हाई कोर्ट ने निचली अदालत में पेश सुबूतों के आधार पर अपील खारिज कर दी। गैरमौजूदगी में सुनवाई को आधार बना वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और नए सिरे से सुनवाई का आदेश मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मांग खारिज कर दी, हालांकि खुद सुनवाई को राजी हो गया है।
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