सोमवार, जनवरी 21, 2013

..जब फफक कर रोने लगीं सोनिया गांधी



..जब फफक कर रोने लगीं सोनिया गांधी
जयपुर। राहुल गांधी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के रूप में अपने पहले भाषण में अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से लेकर जयपुर के चिंतन शिविर तक के फासले को जिस अंदाज में रखा, उससे कांग्रेस समिति की खुली बैठक का माहौल ही भावुक हो गया। सबकी आंखें छलक पड़ीं।
सोनिया गांधी का जिक्र करते हुए राहुल बोले, कल रात को मां उनके कमरे में आई और रोने लगीं, क्योंकि वह जानती हैं कि ताकत या सत्ता का नशा कई लोगों के लिए जहरीला होता है। चूंकि वह खुद ताकत में रहकर भी उससे विरक्त रहीं, लिहाजा वह इसे ठीक से समझती हैं। सत्ता सिर्फ लोगों को सशक्त बनाने के लिए होनी चाहिए।
पार्टी उपाध्यक्ष पद पर ताजपोशी के साथ दादी और पिता की अकाल मौत के दर्द को राहुल ने सिर्फ भावनात्मक स्तर पर ही नहीं भुनाया, बल्कि मां सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री न बनने के त्याग को गिनाते हुए यह संदेश देने की कोशिश भी की कि वह सत्ता और पद से ऊपर की सोच के साथ आगे बढ़ने जा रहे हैं। राहुल के अनुसार शनिवार को उपाध्यक्ष बनने के बाद जब सब जगहों से बधाई का सिलसिला चल रहा था तो उनकी मां सोनिया किस मानसिक दौर से गुजर रही थीं।
इससे पहले राहुल ने 1984 में अपनी दादी की हत्या की घटना के बाद खुद पर बीते त्रासद अनुभवों और मनोभावों को पहली बार साझा किया। राहुल ने कहा कि दादी [इंदिरा गांधी] के दो अंगरक्षक उनके साथ बैडमिंटन खेलते थे और दोस्त थें। उन्होंने ही मुझे बैडमिंटन सिखाया और एक दिन दादी की हत्या कर दी। इससे मेरे जीवन का संतुलन बिगड़ गया। ऐसा दुख पहली बार देखा था। राहुल ने बताया कि मेरे पिता बंगाल से अस्पताल आए तो वह रो रहे थे। मैंने उन्हें पहली बार रोते देखा। मेरे लिए वह सबसे बहादुर थे, लेकिन वह रो रहे थे। उसी शाम मैं अपने पिता को देश को संबोधित करते देख रहा था। मैं जानता था कि वह अंदर से टूटे हुए हैं, लेकिन उन्हें बोलते देख मुझे भी आशा बंधी। वह अंधेरे में एक किरण की तरह था। इस वाकये को याद करते हुए राहुल ने अपने आठ साल के राजनीतिकअनुभव की बात करते हुए मां सोनिया से शनिवार रात हुई बातचीत को जोड़ा और कहा कि बिना आशा के कुछ नहीं हो सकता।

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