शनिवार, अक्तूबर 15, 2011

आधी आबादी’ को मिले पूरा हक...

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परिवार की सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में अपना जीवन समर्पित करने वाली महिलाओं की क्षमताओं का सही मायनों में आकलन आज तक नहीं हो पाया है। समाज अपनी सम्पूर्णता को तब तक नहीं पा सकता, जब तक कि दुनिया की आधी आबादी को उसके अधिकारों, आजादी और सम्मान से वंचित रखा जाता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका पहचानकर ही संयुक्त राष्ट्र की ओर से पहली बार वर्ष 2008 में 15 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ की शुरुआत की गई। ‘अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ मनाने को लेकर हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा में 18 दिसम्बर, 2007 को ही एक प्रस्ताव पारित कर दिया गया था। 

इस दिवस को मनाने के पीछे तर्क यह दिया गया कि ग्रामीण इलाकों में गरीबी दूर करने, खाद्य सुरक्षा में सुधार करने, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि का विकास करने में ग्रामीण पृष्ठभूमि की महिलाएं काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। विश्व के विकसित और विकासशील देशों में आज ग्रामीण महिलाएं मूख्य भूमिका अदा कर रही हैं। ग्रामीण इलाके की महिलाएं एक तरफ जहां फसलों के उत्पादन, देख-रेख, भोजन, पानी और ईंधन जुटाने में सहायक साबित हो रही हैं वहीं दूसरी ओर वे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों की देखभाल भी अच्छे तरीके से कर रही हैं। भारत में महिलाओं की स्थिति के बारे में अगर गौर करें तो यहां महिला हमेशा से परिवार की धुरी रही है। 

अलग-अलग कालखण्डों में समय के हिसाब से उसकी प्रासंगिकता पुरुषों द्वारा निर्धारित की गई। अधिकार और स्वतंत्रता उसे वंचित किया जा रहा, लेकिन सभ्यता के विकास के साथ महिलाओं के प्रति सोच में भी बदलाव हुआ। आजादी के बाद भी भारत में महिलाओं की भूमिका बहुत हद तक सामाजिक ही रही उसकी राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र से दूरी बनी रही।  भारत में उदारीकरण का दौर शुरू होने पर महिलाओं की स्थिति में तेजी से परिवर्तन देखने को मिला। देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फैलाव ने बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार दिया जिनमें महिलाओं की संख्या भी उल्लेखनीय रही। नए प्रौद्योगिकी और शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाना शुरू किया और धीरे-धीरे हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए द्वार खुलने लगे उनकी सामाजिक स्थिति के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई। भारत सरकार की ओर से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए वर्तमान में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उनमें प्रमुख रूप से स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन, राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना, जननी सुरक्षा योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शामिल हैं। इसके अलावा महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 1990 में एक बड़ा कदम उठाया। इस वर्ष सरकार ने राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें अपनी भूमिका के प्रति जागरूक करती है। इसके अलावा भारत सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त करने के लिए गैर सरकारी संगठनों को विभिन्न योजनाओं के द्वारा पार्याप्त वित्त व्यवस्था के साथ-साथ रोजगार प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही है। सरकार के इस प्रयास का असर शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, संचार, उद्योग, कानून और प्रशासनिक क्षेत्रों में विकास के रूप में दिखायी दे रहा है। सरकारी प्रयास के साथ-साथ आज ग्रामीण महिलाएं स्वयं भी काफी जागरूक हो रही हैं। महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए एकजुट कार्य करते हुए हर गांव और कस्बे में सफलता पा रही हैं। स्वयं सेवी संगठनों को सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों जैसे नाबार्ड, राष्ट्रीय महिला कोष, यूएनडीपी के जरिए सहायता उपलब्ध करायी जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज ग्रामीण महिलाएं सीढ़ी-दर सीढ़ी प्रगति की राह पर अग्रसर हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध समाप्त हो गए हैं। कन्या भ्रूणहत्या, महिलाओं के प्रति यौन हिंसा और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराइयां समाज में आज भी कायम हैं। ग्रामीण महिलाओं का सही मायने में सशक्तिकरण के लिए अभी और सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता ळें
प्रस्तुति

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