आजकल छोटे परदे टीवी पर जमीन से जुड़े सीरियल की बहार आई हुई है, सामाजिक मुद्दे को लेकर आए ‘बालिका वधू’ में भारतीय संस्कृति की एक नई बियार चला दी है। महिला समाज की बहुत सी परेशानियों पर रोशनी डालते हुए , इस सीरियल में पराम्परिक खान-पान को भी बेहतर दर्शाया है। मतलब लोगों को भारतीय समस्या के साथ-साथ भारतीय संस्कृति से भी जोड़ने की पूरी कोशिश की। मगर बालिका वधू की लोकप्रियता के बाद लगातार कई सीरियल ऐसे आए जिसमें राज्यों की जुड़ी समस्याओं, भाषाओं से लेकर पहनावे को भी बाखूबी दिखाया जा है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है? कि सारी बातें सीरियल के आसपास की घूम रही है। दरअसल, मैं इन टीवी प्रोग्राम के जरिए ‘नारी घूंघट’ की चर्चा करना चाह रही हूं, मतलब कभी शालीनता से सिर पर पल्लू रखें महिला बहुत की खूबसूरत लगती है। तो कभी शरारत से भारी आंखें घंूघट से झंकती है। तो कभी ना चाहते हुए भी इस प्रथा को अपनाती है। इसलिए पर्दा यानि घंूघट करना रूढिवादी सोच में भी शामिल किया जाता है। जिसे समाज का हर वर्ग अपनी-अपनी रीतियों के अनुसार व्यक्त करता है। लेकिन आज भी पर्दा करना हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा माना जाता है। इसी लिए ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह अनिवार्य है, पर साथ ही कई महानगरीय परिवारों में भी ये चलन जारी है।
मुख्य रूप से घंूघट करना बड़ों को सम्मान देने से जोड़ा जाता है, इसीलिए घर की बहुओं को परिवार के बड़ों के आगे घूंघट निकालना होता है। मगर दूसरी तरफ यह भी माना जाता है बुरी नजर से बचने के लिए घंूघट का प्रचलन आज भी जारी है। मगर क्या आप को पता है कि भारतीय संस्कृति में घूंघट करना भारतीय संस्कृति की देन नहीं! बल्कि भारतीय परंपरा में घूंघट का आना, अपनाना और प्रचलित होना काफी कष्टकारी होने के साथ-साथ काफी रोचक भी है ? यह सटीक नहीं कहा जा सकता कि पर्दा प्रथा ‘सनातन समय से चली आ रही है या फिर कालांतर में यह प्रचलन बढ़ा है?’ शायद आप को जानकर हैरानी होगी कि विचारकों का मानना है कि भारत में घंूघट आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों की देन है। मतलब देश में होते शासन और आक्रमणों ने पर्दा प्रथा की नींव रखी है। राज्यों में आपसी लड़ाइयां और मुगलों का हमला होने वाले इन दो कारणों ने भारत में पूजनीय दर्जा पाने वाले महिला वर्ग को पर्दे के पीछे कर दिया। जिससे उन्हें आक्रमणकारियों के बुरी नजर और बुरे व्यवहार से बचाया जा सके। क्योंकि भारतीय महिलाओं की सुंदरता से आकर्षित होकर आक्रमणकारी ज्यादा अत्याचारी होते जा रहे थे। जिसके कारण भारतीय महिलाओं के साथ बलात्कार और अपहरण की घटनाएं बढ़ने लगीं, तो महिलाओं की सुंदरता को छिपाने के लिए घूंघट का इजाद हो गया। पहले यह आक्रमणकारियों से बचने के लिए था, मगर बाद में घंूघट करना परिवार में बड़ों के सम्मान के लिए और धीरे से इसने अनिवार्यता का रूप धारण कर लिया। आक्रमणकारी चले गए, देश आजाद हो गया लेकिन महिलाओं के चेहरों पर पर्दा अब भी कायम है। हालांकि विकासशील भारत में आज भी अनुशासन और सम्मानता के प्रतीक के तौर पर घंूघट को अपनाते है। वो बात अलग है कि कभी खुशी के सिर ढकना सुंदरता में शामिल है तो कभी दबाव में चहेरे छिपाकर रखना मजबूरी का भी प्रतीक है!
अंजू सिंह
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