शनिवार, अप्रैल 10, 2010

धोखा देने की सजा

किसी जंगल में एक सियार रहता था। एक दिन वह भोजन की तलाश में शहर की ओर चला आया। शहर के कुत्ते उसके पीछे पड़ गए। अपने आप को बचाने के लिये सियार एक रंगरेज घर में घुस गया। घर के बरामदे में एक नाद थी। जिसमें नील भरी थी। सियार नाद में कूद गया। इससे वह पूरी तरह नीले रंग में हो गया । कुत्तों ने जब उसे नीले रंग का देखा तो उसे कोई विचित्र और भयानक जीव समझकर डरकर भाग गए। सियार मौका पाकर निकला और सीधे जंगल में चला गया। नीले रंगवाले विचित्र जीव को देखकर शेर और बाघ तक उससे भयभीत हो गए। वे इधर-उधर भागने लगे।धूर्त सियार ने सबको भय से व्याकुल जानकर कहा-'भाई, तुम मुझे देखकर इस तरह क्यों भाग रहे हो? मुझे तो विधाता ने आज स्वयं अपने हाथों से बनाया है। जानवरों का कोई राजा नहीं था।इसलिए ब्रह्म्ïाा ने मेरी रचना करके कहा-'मैं तुम्हें सभी जानवरों का राजा बनाता हूँ। तुम धरती पर जाकर जंगली जंतुओं का पालन करो। मैं ब्रह्म्ïाा के आदेश से ही आया हूँÓÓ नीला जानवर उन सबका स्वामी है-यह बात सुनकर सिंह, बाघ आदि सभी जंतु उसके समीप आकर बैठ गए। वे उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी चापलूसी करने लगे। धूर्त सियार ने सिंह को अपना महामंत्री नियुक्त किया। इसी प्रकार बाघ को सेनानायक बनाया, चीते को पान लगाने का काम सौंपा, भेडिय़े को चपरासी बना दिया। उसने सभी जीव-जंतुओं को कोई-न-कोई जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन अपनी जाति के सियारों से बात तक न की। उन्हें धक्के देकर बाहर निकलवा दिया। सिंह आदि जंतु जंगल में शिकार करके लाते और उसके सामने रख देते थे। सियार स्वामी की तरह मांस को सभी जीवों में बाँट देता था। इस प्रकार उसका राजकाज आराम से चलता रहा।एक दिन वह अपनी राजसभा में बैठा था। उसे दूर से सियारों के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी। सियारों की 'हुआ-हुआÓ सुनकर वह पुलकित हो गया और आनंद-विभोर होकर सुर-में-सुर मिलाकर 'हुआ-हुआÓकरने लगा। उसके चिल्लाने से सिंह आदि जानवरों को पता चल गया कि यह तो मामूली सियार है। वह चालबाजी के बल पर राजा बनकर हम पर शासन कर रहा है। वे लज्जा और क्रोध से भर गए और उन्होंने एक ही प्रहार से सियार को मार डाला। इसीलिए कहा गया है कि आत्मीय जनों को कभी नहीं छोडऩा चाहिए।

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