मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

मालेगांव ब्लास्ट : निर्दोष युवाओं को आरोपी बनाने वाले एटीएस अधिकारियों को जेल भेजा जाए : विधायक आसिफ शेख

मुंबई। (www.visharadtimes.com)
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की भेदभावपूर्ण कार्यशैली बताते हुए एनसीपी विधायक आसिफ शेख ने मांग की है कि मुस्लिम युवकों को कई साल तक जेल में सड़ाने के लिए एटीएस अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए।
जिन आरोपियों को अदालत ने बरी किया है, यह सभी पांच साल जेल में बिता चुके हैं। बाद में उन्हें जमानत दे दी गई थी। जबकि इसी तरह की मांग देश के अनेक मानवाधिकार संगठनों ने एटीएस के दोषी अधिकारियों को सजा देने और रिहा किए गए निर्दोष आरोपियों को मुआवजा देने की मांग की है।
आप को याद दिलाते चले कि महाराष्ट्र के मालेगांव में 2006 और 2008 में दो अलग-अलग बम ब्लास्ट हुए थे। पहले मामले में मुंबई की एक कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अब लोगों की निगाहें दूसरे मामले की सुनवाई पर टिकी हुई हैं, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर आरोपी हैं। कभी बिंदास जीवन जीने वालीं इस साध्वी की लाइफ बम ब्लास्ट के बाद मानों पूरी तरह से बदल गई। वे कैंसर से जूझ रही हैं। उन पर अपने ही साथी संजय जोशी की हत्या का आरोप भी है।
कहा जाता है कि प्रज्ञा से प्रभावित होकर मध्य प्रदेश भाजपा के एक पूर्व विधायक ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा था, जिसे प्रज्ञा ने ठुकरा दिया था। साध्वी प्रज्ञा भारती का असल नाम प्रज्ञा सिंह ठाकुर हैं। ये मध्य प्रदेश के भिंड जिले के कछवाहा घर गांव में हुआ था। प्रज्ञा को 2006 में मालेगांव में हुए बम ब्लास्ट के आरोप में 23 अक्टूबर 2008 में गिरफ्तार किया गया था। प्रज्ञा से प्रेम करने लगे थे सुनील जोशी
साध्वी प्रज्ञा पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक सुनील जोशी की हत्या का भी आरोप है। संघ प्रचारक जोशी की 27 दिसम्बर, 2007 को देवास में हत्या कर दी गई थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच में सामने आया है कि सुनील का प्रज्ञा के प्रति आकर्षण ही उनकी हत्या का कारण बना। प्रज्ञा को डर था कि कहीं सुनील मालेगांव ब्लास्ट का राज न खोल दें।
साध्वी पर मालेगांव में हुए धमाकों की साजिश रचने का आरोप हैं। धमाकों में सात की मौत हो गई थी।  प्रज्ञा के पिता सीपी ठाकुर लहार के गल्ला मंडी रोड पर रहते थे और यहां एक क्लीनिक चलाते थे। ठाकुर स्वयं शुरू से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे और प्रज्ञा को भी हिन्दूवादी शिक्षा अपने पिता से ही मिली। महत्वाकांक्षी प्रज्ञा कॉलेज के दिनों में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी थीं।  वाकपटुता के बल पर उन्होंने जल्द ही परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाई। उनके क्रांतिकारी भाषण सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे।  पहले लहार फिर भिंड जिले और बाद में उनके भाषणों का प्रभाव भोपाल, देवास, जबलपुर और इंदौर में पड़ा। प्रज्ञा ने परिषद को छोड़कर साध्वी का रूप धारण कर लिया। साध्वी का चोला धारण करने के बाद वे कई संतों के संपर्क में आईं तथा धार्मिक नगरी उज्जैन सहित कई नगरों में प्रवचन भी दिए।  चार बहन और एक भाई के बीच दूसरे नंबर की संतान प्रज्ञा ने धीरे-धीरे सूरत को अपनी कार्यस्थली बना लिया। आर्थिक स्थिति मजबूत होने पर उन्होंने सूरत में न केवल एक आश्रम बनाया, बल्कि अपने सभी परिजनों को वहीं बुला लिया। प्रज्ञा के समर्थक उनका नाम आतंकवादी महिला के रूप में उछाले जाने को पूरी तरह गलत मानते हैं।
आठ सितंबर 2006 को महाराष्ट्र के मालेगांव की हमीदिया मस्जिद के नजदीक हुए धमाकों में 37 लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए थे। जिसके सभी नौ आरोपियों को मुंबई की एक अदालत नें बरी कर दिया है।
दस वर्ष पूर्व मालेगांव में हुए बम धमाकों के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए ने  आरोपी बनाए गए नौ मुस्लिम युवाओं नूरुलहुदा समसूद दोहा, शब्बीर अहमद मशीउल्लाब, रईस अहमद रज्जब अली, सलमान फारसी, फारोग इकबाल मकदूमी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, आसिफ खान बशीर खान और मोहम्मद जाहिद अब्दुल मजीद को मुंबई की एक अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है। मुस्लिम युवाओं के बरी होने के बाद देश कई मुस्लिम संगठने ने एटीस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने और युवाओं को मुआवजा दिए जाने की मांग शुरु कर दी है।

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