हाथ पर झाड़ू फिराने के बाद कमल पर निशाना
मालूम नहीं कि अरविंद केजरीवाल को क्रिकेट पसंद है
या नहीं, लेकिन वो खिलाड़ी जोरदार निकले। वो सियासत की पिच पर उतरे सबसे नए
खिलाड़ी हैं, जो चुनावी मैच में आए दिन पुराने दिग्गजों को अपनी नई-नई
गुगली गेंदों से क्लीन बोल्ड कर रहे हैं।
केजरीवाल की खतरनाक सियासी बॉलिंग शुरू हुई दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों से, जब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि वो कोई अंतर पैदा कर पाएंगे। कांग्रेस की दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने केजरीवाल के बारे में पूछने पर सवाल किया था, "कौन हैं वो?"
जिस दिन ईवीएम मशीन खुलीं, शीला को इस सवाल का ऐस जवाब मिला, जो उन्हें ताउम्र याद रहेगा। आम आदमी का नाम लेकर 'अलग राजनीति' करने उतरे अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के बाद अब भाजपा पर हमला बोल रहे हैं, क्योंकि जंग अब विधानसभा नहीं, बल्कि लोकसभा की है। और इस मैदान में उन्हें निशाना हाथ के बजाय कमल पर लगाना है।
केजरीवाल की खतरनाक सियासी बॉलिंग शुरू हुई दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों से, जब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि वो कोई अंतर पैदा कर पाएंगे। कांग्रेस की दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने केजरीवाल के बारे में पूछने पर सवाल किया था, "कौन हैं वो?"
जिस दिन ईवीएम मशीन खुलीं, शीला को इस सवाल का ऐस जवाब मिला, जो उन्हें ताउम्र याद रहेगा। आम आदमी का नाम लेकर 'अलग राजनीति' करने उतरे अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के बाद अब भाजपा पर हमला बोल रहे हैं, क्योंकि जंग अब विधानसभा नहीं, बल्कि लोकसभा की है। और इस मैदान में उन्हें निशाना हाथ के बजाय कमल पर लगाना है।
कुर्सी छोड़ने के बाद केजरीवाल के हाथ खुले
दिल्ली में सरकार से इस्तीफा देने को लेकर आम आदमी
पार्टी की भले कितनी आलोचना हुई हो, लेकिन राजनीतिक जानकार यह समझ सकते हैं
कि इसके पीछे सोची-समझी रणनीति थी। केजरीवाल छापामार स्टाइल की राजनीति
करने के लिए जाने जाते हैं, जो परंपरागत सियासत करने वाले नेताओं को समझने
में कुछ वक्त लग जाता है।
जन लोकपाल को मुद्दा बनाकर राजधानी की गद्दी छोड़कर केजरीवाल ने एक तीर से दो शिकार किए। सिद्धांतों के नाम पर कुर्बानी भी हो गई और लोकसभा चुनावों के लिए हाथ खाली हो गए। अगर वह दिल्ली में बने रहते, तो लोकसभा के लिए इस तरह धुआंधार प्रचार कतई नहीं कर सकते थे।
दिल्ली की कुर्सी से उठने के बाद वो लोकसभा चुनावों की तैयारियों में लगे और शुरू कर दिए हमले। शुरुआत में उन्होंने कांग्रेस और भाजपा, दोनों को लपेटा। लेकिन जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस पर हमला बोलना अपने हथियारों की धार को जाया करना है, तो फोकस मोदी पर लगाया।
जन लोकपाल को मुद्दा बनाकर राजधानी की गद्दी छोड़कर केजरीवाल ने एक तीर से दो शिकार किए। सिद्धांतों के नाम पर कुर्बानी भी हो गई और लोकसभा चुनावों के लिए हाथ खाली हो गए। अगर वह दिल्ली में बने रहते, तो लोकसभा के लिए इस तरह धुआंधार प्रचार कतई नहीं कर सकते थे।
दिल्ली की कुर्सी से उठने के बाद वो लोकसभा चुनावों की तैयारियों में लगे और शुरू कर दिए हमले। शुरुआत में उन्होंने कांग्रेस और भाजपा, दोनों को लपेटा। लेकिन जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस पर हमला बोलना अपने हथियारों की धार को जाया करना है, तो फोकस मोदी पर लगाया।
मोदी का सिरदर्द बना केजरी का गुजरात दौरा
कांग्रेस के अलावा नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने के
लिए किसी असरदार हथियार की जरूरत थी और वो उन्हें मिला मुकेश अंबानी के
रूप में। दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस हो या कानपुर में चुनावी रैली,
केजरीवाल ने तरकाश से अंबानी और गैस के दाम वाले तीर निकाले और चला दिए
मोदी पर।
लेकिन इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी ने उन्हें बल भी दिया और अपने हमलों को आक्रामक बनाने का बहाना भी। केजरीवाल ने शब्दबाण छोड़ने के बाद फैसला किया कि उन्हें मोदी का मुंह खुलवाने के लिए मैदान पर उतरना होगा।
और फिर शुरू हुआ दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री का चार दिवसीय गुजरात दौरा। और इस दौरे का हरेक दिन मीडिया को मसाला देने के अलावा आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को वो तरजीह भी दिला रहा है, जो दिल्ली की सरकार चलाने के वक्त उनसे खो गई थी।
लेकिन इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी ने उन्हें बल भी दिया और अपने हमलों को आक्रामक बनाने का बहाना भी। केजरीवाल ने शब्दबाण छोड़ने के बाद फैसला किया कि उन्हें मोदी का मुंह खुलवाने के लिए मैदान पर उतरना होगा।
और फिर शुरू हुआ दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री का चार दिवसीय गुजरात दौरा। और इस दौरे का हरेक दिन मीडिया को मसाला देने के अलावा आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को वो तरजीह भी दिला रहा है, जो दिल्ली की सरकार चलाने के वक्त उनसे खो गई थी।
पहले दिन से खींचा मीडिया का ध्यान
सियासत भी इत्तफाक का लुत्फ ले रही है। जिस रोज
केजरीवाल का गुजरात दौरा शुरू हुआ, ठीक उसी दिन सवेरे चुनाव आयोग ने वोटिंग
के कार्यक्रम से परदा हटा दिया और लागू हो गई आदर्श आचार संहिता।
इस बीच दिल्ली से हजार किलोमीटर फासले पर गुजरात में चुनावी पारा उस वक्त आसमान पर पहुंच गया, जब गुजरात पुलिस केजरीवाल को आधे घंटे के लिए अपने साथ थाने ले गई। यह गुजरात सरकार का सेल्फ-गोल साबित हुआ।
इस घटना को केजरीवाल ने इस तरह पेश किया कि गुजरात में विकास के दावों की पोल खोलने से जुड़े उनके कार्यक्रम से मोदी डर गए हैं और इसलिए उन्हें रोकने की कोशिश हो रही है।\
इस बीच दिल्ली से हजार किलोमीटर फासले पर गुजरात में चुनावी पारा उस वक्त आसमान पर पहुंच गया, जब गुजरात पुलिस केजरीवाल को आधे घंटे के लिए अपने साथ थाने ले गई। यह गुजरात सरकार का सेल्फ-गोल साबित हुआ।
इस घटना को केजरीवाल ने इस तरह पेश किया कि गुजरात में विकास के दावों की पोल खोलने से जुड़े उनके कार्यक्रम से मोदी डर गए हैं और इसलिए उन्हें रोकने की कोशिश हो रही है।\
माफी मांगकर गलती दूर करने की कोशिश
दोपहर बाद का यह मामला ठंडा पड़ा भी नहीं था कि
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शन
किया और चुनावी जंग, गुंडई के मैदान में बदल गई।
यह बात सही है कि इसमें आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं पर हिंसा करने का इल्जाम लगा, लेकिन मीडिया की पूरी फुटेज भी उन्हें मिली। बदनाम हुए, तो क्या नाम न होगा!
अरविंद केजरीवाल जानते थे कि हिंसा से उनकी छवि पर आंच आ सकती है, सो रात में माफी मांगी और अगले रोज से किसी भी तरह का आंदोलन न करने का आश्वासन दिया।
यह बात सही है कि इसमें आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं पर हिंसा करने का इल्जाम लगा, लेकिन मीडिया की पूरी फुटेज भी उन्हें मिली। बदनाम हुए, तो क्या नाम न होगा!
अरविंद केजरीवाल जानते थे कि हिंसा से उनकी छवि पर आंच आ सकती है, सो रात में माफी मांगी और अगले रोज से किसी भी तरह का आंदोलन न करने का आश्वासन दिया।
हमला करने वाले हमारे भाईः केजरीवाल
इसके अगले रोज केजरीवाल के गुजरात दौरे का दूसरा
दिन था और दिल्ली में पुलिस ने आम आदमी पार्टी नेता आशुतोष और शाजिया
इल्मी को भाजपा कार्यालय पर हुई हिंसा के मामले में पूछताछ के लिए थाने ले
लाया गया।
गुजरात दौरे पहले दिन केजरीवाल की गाड़ी पर हमला हुआ था और दूसरे दिन मनीष सिसोदिया की गाड़ी पर हमला हुआ। एक बार फिर दिल्ली से लेकर गुजरात तक, मीडिया का फोकस दिन भर आम आदमी पार्टी पर लगा रहा।
AAP नेताओं का कहना था कि उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई हो रही है। गुजरात में केजरीवाल ने एक बार विनम्रता का चोगा ओढ़ा और कहा कि उनके कार्यकर्ताओं पर हमला बोलने वाले भी उनके भाई-बंधु हैं।
गुजरात दौरे पहले दिन केजरीवाल की गाड़ी पर हमला हुआ था और दूसरे दिन मनीष सिसोदिया की गाड़ी पर हमला हुआ। एक बार फिर दिल्ली से लेकर गुजरात तक, मीडिया का फोकस दिन भर आम आदमी पार्टी पर लगा रहा।
AAP नेताओं का कहना था कि उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई हो रही है। गुजरात में केजरीवाल ने एक बार विनम्रता का चोगा ओढ़ा और कहा कि उनके कार्यकर्ताओं पर हमला बोलने वाले भी उनके भाई-बंधु हैं।
मोदी से मिलने चल दिए, वक्त नहीं मिला
शुक्रवार को अरविंद केजरीवाल के गुजरात दौरे का
तीसरा दिन था। और इस चालाक सियासतदां ने नया दांव खेला। उन्होंने 16 सवालों
की फेहरिस्त तैयार की और जवाब मांगा मोदी से। यही नहीं रुके।
मोदी से मिलने के लिए चल लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से। हालांकि, उन्होंने मुलाकात के लिए वक्त नहीं लिया था और जाहिर है, इस बात का इल्म उन्हें पहले से रहा होगा कि मुलाकात होने की संभावना न के बराबर है।
लेकिन शायद मुलाकात न होना उनके लिए ज्यादा सियासी फायदा साबित हुआ। उनका काफिला एक बार फिर रोका गया, मनीष सिसोदिया उनके लिए वक्त लेने पहुंचे और सीएम ऑफिस ने उन्हें आज नहीं, बल्कि आगे मुलाकात का वक्त देने का आश्वासन दिया। इस बात की पूरी संभावना है कि आम आदमी पार्टी अब इसे भी भुनाने की तैयारी करेगी। यह केजरीवाल का छापामार स्टाइल है।
मोदी से मिलने के लिए चल लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से। हालांकि, उन्होंने मुलाकात के लिए वक्त नहीं लिया था और जाहिर है, इस बात का इल्म उन्हें पहले से रहा होगा कि मुलाकात होने की संभावना न के बराबर है।
लेकिन शायद मुलाकात न होना उनके लिए ज्यादा सियासी फायदा साबित हुआ। उनका काफिला एक बार फिर रोका गया, मनीष सिसोदिया उनके लिए वक्त लेने पहुंचे और सीएम ऑफिस ने उन्हें आज नहीं, बल्कि आगे मुलाकात का वक्त देने का आश्वासन दिया। इस बात की पूरी संभावना है कि आम आदमी पार्टी अब इसे भी भुनाने की तैयारी करेगी। यह केजरीवाल का छापामार स्टाइल है।
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