मिस्र की सिनेमा में बदलाव की हवा
आमतौर पर मिस्र के सिनेमा को रोमांटिक कहानियों और
कॉमेडी के लिए जाना जाता है। कभी कभार वहां राजनीतिक फिल्में भी बनती हैं,
लेकिन अब वहां बदलाव की हवा बहने लगी है। वहां नास्तिकता, समलैंगिकता और
धार्मिक भेदभाव जैसे विषयों पर बातें करने वाले फिल्म निर्माताओं की तादाद
लगातार बढ़ रही है।
खासतौर से हाल में आई तीन फिल्में – दि ऐथिस्ट, फैमिली सीक्रेट्स और एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच इस रुझान को आगे बढ़ा रही हैं। कथानक के लिहाज से ये फिल्में अब तक बनती आई फिल्मों के मुकाबले काफी अलग हैं।
दि ऐथीइस्ट में नास्तिकता जैसे मसले पर चर्चा की गई है, वो भी एक ऐसे देश में जहां धर्म में यक़ीन को पूरी तरह से स्वभाविक माना जाता है।
खासतौर से हाल में आई तीन फिल्में – दि ऐथिस्ट, फैमिली सीक्रेट्स और एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच इस रुझान को आगे बढ़ा रही हैं। कथानक के लिहाज से ये फिल्में अब तक बनती आई फिल्मों के मुकाबले काफी अलग हैं।
दि ऐथीइस्ट में नास्तिकता जैसे मसले पर चर्चा की गई है, वो भी एक ऐसे देश में जहां धर्म में यक़ीन को पूरी तरह से स्वभाविक माना जाता है।
क्या है इन फिल्मों में?
फैमिली सीक्रेट्स एक समलैंगिक किशोर की कहानी है,
जो सेक्स संबंधी अपनी रुचि को छिपाने के लिए संघर्ष करता है। हालांकि मिस्र
में समलैंगिकता गैरक़ानूनी नहीं है।
इसी तरह एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच एक ऐसे ईसाई लड़के की कहानी है जो सरकारी स्कूल में दाखिला पाने के लिए मुसलमान होने का नाटक करता है। वो ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसके पिता की मौत हो गई है और उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो प्राइवेट स्कूल का खर्च उठा सके।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस बदलाव की वजह क्या है?
इसी तरह एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच एक ऐसे ईसाई लड़के की कहानी है जो सरकारी स्कूल में दाखिला पाने के लिए मुसलमान होने का नाटक करता है। वो ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसके पिता की मौत हो गई है और उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो प्राइवेट स्कूल का खर्च उठा सके।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस बदलाव की वजह क्या है?
दलाव की वजह
इसके लिए हमें ध्यान देना होगा कि ये फिल्में कब
बनीं। तीनों फिल्मों को अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी के शासन के दौरान
2013 में बनाया गया। कई लोगों को लगता है कि इस इस्लामवादी राष्ट्रपति के
शासन के दौरान मिस्र में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर एक गंभीर खतरा पैदा
हो गया था। ऐसे में बचाव के लिए दलील तैयार करने के मकसद से इन फिल्मों की
योजना बनाई गई और शूटिंग की गई।
फिल्म निर्माता जानते थे कि वो एक नपातुला जोखिम ले रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस बात की उम्मीद नहीं छोड़ी कि उनका काम आखिरकार सिल्वर स्क्रीन पर दिखाई देगा। एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच के निदेशक अम्र सलमाह ने अल-मिस्री अल-यवम समाचार पत्र को बताया, "मैंने ये नहीं सोचा था कि ये फिल्म सेंसरशिप में फंस जाएगी।"
सैना समर्थित मौजूदा सरकार के तहत इस फिल्मों को सेंसर बोर्ड की हरी झंडी मिल गई। हालांकि इस दौरान फिल्मकारों को कुछ कड़े सवालों के जवाब देने पड़े।
फिल्म निर्माता जानते थे कि वो एक नपातुला जोखिम ले रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस बात की उम्मीद नहीं छोड़ी कि उनका काम आखिरकार सिल्वर स्क्रीन पर दिखाई देगा। एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच के निदेशक अम्र सलमाह ने अल-मिस्री अल-यवम समाचार पत्र को बताया, "मैंने ये नहीं सोचा था कि ये फिल्म सेंसरशिप में फंस जाएगी।"
सैना समर्थित मौजूदा सरकार के तहत इस फिल्मों को सेंसर बोर्ड की हरी झंडी मिल गई। हालांकि इस दौरान फिल्मकारों को कुछ कड़े सवालों के जवाब देने पड़े।
बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन
कई लोग इन फिल्मों की कमाई की क्षमता को लेकर भी
सवाल उठा रहे हैं। खासकर एक ऐसे वक्त में जब मिस्र की आर्थिक स्थिति संकट
के दौर से गुजर रही है। फैमिली सीक्रेट्स और एक्सक्यूज़ माई फ्रैंच को
बॉक्स ऑफिस पर सामान्य कामयाबी ही मिल सकी, जबकि दि ऐथीइस्ट इंटरनेट पर ही
सनसनी फैला सकी।
मिस्र के राजनयिक अबद-अल-मुनइम अल-शाजली, जो फिल्मों के काफी शौकीन हैं, उनका मानना है कि ऐसी फिल्मों को देखने के दौरान एक खास तरह की आजादी का अनुभव होता है। वो बताते हैं, "ये फिल्में आम लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं होती हैं। निर्माताओं को लगा है कि तीन साल की अस्थिरता और सड़कों पर प्रदर्शन के बाद अब लोगों के लिए ऐसी फिल्में देखने का सही समय है, हालांकि हो सकता है कि ये ब्लॉकबस्टर टाइप न हों।"
अल-शाजली कहते हैं कि इन फिल्मों का महत्व मुनाफे के लिहाज से कम है, बल्कि ये मिस्र के समाज में वर्जनाओं को तोड़ने के लिए हैं।
मिस्र के राजनयिक अबद-अल-मुनइम अल-शाजली, जो फिल्मों के काफी शौकीन हैं, उनका मानना है कि ऐसी फिल्मों को देखने के दौरान एक खास तरह की आजादी का अनुभव होता है। वो बताते हैं, "ये फिल्में आम लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं होती हैं। निर्माताओं को लगा है कि तीन साल की अस्थिरता और सड़कों पर प्रदर्शन के बाद अब लोगों के लिए ऐसी फिल्में देखने का सही समय है, हालांकि हो सकता है कि ये ब्लॉकबस्टर टाइप न हों।"
अल-शाजली कहते हैं कि इन फिल्मों का महत्व मुनाफे के लिहाज से कम है, बल्कि ये मिस्र के समाज में वर्जनाओं को तोड़ने के लिए हैं।
समलैंगिकता को बढ़ावा देने के आरोप
इन फिल्म निर्माताओं पर देश में समलैंगिकता और
नास्तिकता को बढ़ावा देने का आरोप है। इस तरह की जोरदार प्रतिक्रियाओं को
देखते हुए फिल्म निर्माताओं को अपने फेसबुक पेज पर ये स्पष्ट करना पड़ा कि
उनका मकसद इस मसलों को उगाजर करना है, न कि उन्हें बढ़ावा देना।
दि ऐथीइस्ट के निदेशक नादिर सायफ-अल-दीन ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया, "मुझे धार्मिक फोरम और वेबसाइट पर अज्ञात लोगों से जान से मारने की धमकियां मिलीं।" हालांकि कुछ दूसरे लोगों ने इन रुझानों का स्वागत किया।
सरकारी समाचार पत्र अल-जमहूरियत की पत्रकार यास्मीन अल-कफाफी ने एक टीवी चैनल को बताया, "ये समकालीन फिल्में हैं जो मिस्र के परंपरागत सिनेमा से एकदम अलग हैं।" दि ऐथीइस्ट के फेसबुक पेज पर कई लोगों ने फिल्म की तारीफ भी की।
दि ऐथीइस्ट के निदेशक नादिर सायफ-अल-दीन ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया, "मुझे धार्मिक फोरम और वेबसाइट पर अज्ञात लोगों से जान से मारने की धमकियां मिलीं।" हालांकि कुछ दूसरे लोगों ने इन रुझानों का स्वागत किया।
सरकारी समाचार पत्र अल-जमहूरियत की पत्रकार यास्मीन अल-कफाफी ने एक टीवी चैनल को बताया, "ये समकालीन फिल्में हैं जो मिस्र के परंपरागत सिनेमा से एकदम अलग हैं।" दि ऐथीइस्ट के फेसबुक पेज पर कई लोगों ने फिल्म की तारीफ भी की।
सिनेमा बनाने में आईं कई बाधाएं
इन फिल्मों को बनाने के लिए निर्माताओं को कई तरह
की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस तरह के कथानक पर अभिनय करने के लिए
लोगों को तैयार करना भी कठिन था। हालांकि इसके अलावा कई दूसरी बाधाएं भी
थीं।
फिल्मों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडा। सेंसरशिप अधिकारियों से मंजूरी पाना भी आसान नहीं था। इन तीनों फिल्मों में एक्सक्यूज माई फ्रैंच को सबसे कम विवादित माना गया हालांकि इस फिल्म के बारे में कुछ आलोचकों का कहना था कि इससे मिस्र की छवि खराब होती है।
दूसरी ओर फैमिली सीक्रेट्स के निर्माता को कलाकारों की तलाश में काफी दिक्कतें पेश आईं। फिल्म के निदेशक हानी फावजी बताते हैं, "फिल्म के लिए निर्माता की तलाश आसान नहीं थी।" उन्होंने बताया कि निर्माता मिलने के बाद "अभिनेता (गे टीनेजर) की तलाश करना भी किसी अभियान से कम नहीं था। मैंने इस भूमिका की पेशकश 15 अभिनेताओं से की।।। लेकिन उन सभी ने मना कर दिया।।। वो सभी फिल्म के विषय और अपनी समाजिक स्थिति को लेकर चिंतित थे।"
फिल्मों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडा। सेंसरशिप अधिकारियों से मंजूरी पाना भी आसान नहीं था। इन तीनों फिल्मों में एक्सक्यूज माई फ्रैंच को सबसे कम विवादित माना गया हालांकि इस फिल्म के बारे में कुछ आलोचकों का कहना था कि इससे मिस्र की छवि खराब होती है।
दूसरी ओर फैमिली सीक्रेट्स के निर्माता को कलाकारों की तलाश में काफी दिक्कतें पेश आईं। फिल्म के निदेशक हानी फावजी बताते हैं, "फिल्म के लिए निर्माता की तलाश आसान नहीं थी।" उन्होंने बताया कि निर्माता मिलने के बाद "अभिनेता (गे टीनेजर) की तलाश करना भी किसी अभियान से कम नहीं था। मैंने इस भूमिका की पेशकश 15 अभिनेताओं से की।।। लेकिन उन सभी ने मना कर दिया।।। वो सभी फिल्म के विषय और अपनी समाजिक स्थिति को लेकर चिंतित थे।"
सिनेमा पर चरमपंथी हमले का डर
कई थियेटरों ने तो दि ऐथीइस्ट को रिलीज करने से मना
कर दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि चरमपंथी सिनेमा पर हमला कर सकते हैं।
हालांकि इन फिल्मों ने जटिल मसलों को उठाया, लेकिन कई लोगों को लगता है कि
उन्होंने नास्तिकता या समलैंगिकता का समर्थन नहीं किया।
दि ऐथीइस्ट के निदेशक नादिर सायफ-अल दीन ने अहराम ऑनलाइन को बताया, "हम कभी भी नास्तिकता के समर्थक नहीं थे।" दि ऐथीइस्ट, फैमिली सीक्रेट्स और एक्सक्यूज माई फ्रैंच का अंत समस्या के समाधान के साथ होता है। जैसे नास्तिक अंत में जाकर भगवान में विश्वास करने लगता है और ईसाई लड़का अपना धर्म सभी को बताता है और उसे अपने साथियों के बीच सम्मान मिलता है।
शायद फिल्म निर्माताओं को एहसास था कि वो भले ही उग्र विषयों को उठा रहे हैं और हो सकता है कि उन्हें कुछ दर्शक भी मिल जाएं, लेकिन समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि वो इन फिल्मों का एक क्रांतिकारी अंत भी देख सके। सायफ-अल दीन कहते हैं, "सेक्स, राजनीति और धर्म जैसे विषयों को लेकर आज भी सिनेमा पर पाबंदियां हैं।"
दि ऐथीइस्ट के निदेशक नादिर सायफ-अल दीन ने अहराम ऑनलाइन को बताया, "हम कभी भी नास्तिकता के समर्थक नहीं थे।" दि ऐथीइस्ट, फैमिली सीक्रेट्स और एक्सक्यूज माई फ्रैंच का अंत समस्या के समाधान के साथ होता है। जैसे नास्तिक अंत में जाकर भगवान में विश्वास करने लगता है और ईसाई लड़का अपना धर्म सभी को बताता है और उसे अपने साथियों के बीच सम्मान मिलता है।
शायद फिल्म निर्माताओं को एहसास था कि वो भले ही उग्र विषयों को उठा रहे हैं और हो सकता है कि उन्हें कुछ दर्शक भी मिल जाएं, लेकिन समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि वो इन फिल्मों का एक क्रांतिकारी अंत भी देख सके। सायफ-अल दीन कहते हैं, "सेक्स, राजनीति और धर्म जैसे विषयों को लेकर आज भी सिनेमा पर पाबंदियां हैं।"
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