सोमवार, मार्च 24, 2014

बागपत: मुद्दों की नहीं, बिरादरी की चलती है

बिरादी के हिसाब से बन रही हवा


पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि के रूप में पहचान रखने वाले बागपत संसदीय क्षेत्र में चुनावी माहौल दूसरे इलाकों से बदला-बदला है। दूरदराज गांवों तक में लोग चुनावी चर्चाओं में मशगूल हैं।

वे पास-पड़ोस के इलाके में माहौल जानने के लिए जा रहे हैं तो अपने उम्मीदवारों के पक्ष में फिजा बनाने में जुटे हैं। चौपालों पर हुक्के गुड़गुड़ाते चौधरियों का जमावड़ा है तो पूरी सीट का फीडबैक भी। मुस्लिम और दलित बहुल इलाकों में भी खूब चहल-पहल है।

चुनावों में कार्यकर्ताओं का रोना-रोने वाले नेताओं के लिए बागपत के गांवों का स्वत: स्फूर्त इलेक्शन मैनेजमेंट एक सीख भी है। लगता है हर समर्थक किसी सियासी दल का सक्रिय कार्यकर्ता है।

क्या होंगे विकास के मुद्दे?

यूं तो क्षेत्र में विकास, जर्जर सड़कें और गन्ना मूल्य भुगतान समेत ढेरों मुद्दे हैं लेकिन असली मुद्दा रालोद प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह बने हुए हैं। लामबंदी या तो उनके पक्ष में है या उनके विरोध में। भाषणों में नेता व सभी प्रमुख दलों के समर्थक कह रहे हैं कि वे चौ.अजित को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

दावा तो बागपत का इतिहास बदलने का भी है। मेरठ-शामली रोड पर सरधना बाईपास से करीब आठ किमी दूर दबथुवा गांव में घुसते ही सड़क के किनारे एक बड़े घेर में गांव के मोअज्जिज लोग हुक्का गुड़गुड़ा रहे हैं।

रिटायर्ड इंस्पेक्टर हरकेश सिंह कहते हैं, जाटों को आरक्षण मिलने के बाद फिजा पूरी तरह बदल गई है। कारण, हिंदू ही नहीं मुस्लिम जाटों को भी आरक्षण का लाभ मिल रहा है। बुजुर्ग विजय सिंह बताते हैं, बहुत दिनों बाद जाट बिरादरी इतनी एकजुट है।

मुजफ्फरनगर दंगे और चुनाव

दबथुवा गांव के मुख्य बाजार में लालबहादुर गुप्ता के जनरल स्टोर पर कई व्यापारी बैठे हुए हैं। वे कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगा बागपत के चुनाव को प्रभावित करेगा। चुनाव में मोदी का असर है।

चौधरी अजित को भाजपा के सत्यपाल सिंह से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं, राजेंद्र प्रसाद मानते हैं कि साइलेंट वोट बीजेपी के साथ है। बाबूराम अफसोस जताते हैं कि चुनाव में बिरादरीवाद हावी हो जाता है।

वहीं मनोज कुमार मानते हैं कि अजित और सत्यपाल की टक्कर में गुलाम मोहम्मद के चांस भी बनते हैं। युवा विकास गुप्ता, बिट्टू और विजय कुमार चुनाव को कांटे का मानते हैं।

सियासत ने कराए मुजफ्फरनगर दंगे!

मेरठ-बड़ौत रोड पर रोहटा के मुख्य बाजार में ठेकेदार अलाउद्दीन की फर्नीचर की दुकान है। इसी क्षेत्र के पूठ गांव में 20 साल पेश इमाम रहे मौलाना मो. कामिल कहते हैं, चुनाव पर मुजफ्फरनगर दंगे का असर पड़ेगा।

जाट-मुसलमान हमेशा एक रहते थे, लेकिन वोटों की सियासत के लिए सपा और भाजपा ने उन्हें लड़ा दिया। अलाउद्दीन दावा करते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का रुख गुलाम मोहम्मद की तरफ था।

यह इलाका चौधरी अजित सिंह का है। उन्हें 30-35 फीसदी मुसलमान वोट करेंगे। बाकी वोट सपा को जाएंगे। तो सलीम मिस्त्री और अट्टा के अल्लाराजी कहते हैं तस्वीर साफ होने में अभी वक्त लगेगा।

पिछड़ेपन के लिए अजीत जिम्मेदार

बड़ौत रोड से पांच किमी दाईं तरफ दलित बहुल गांव थिरोट है। यहां बसपा का प्रचार दिखाई पड़ता है। गांव के नानकचंद बेबाकी से कहते हैं, हाथी पर मुहर लगाएंगे। गांव के आधे से ज्यादा वोट बसपा को जाएंगे।

प्रताप कहते हैं, चौधरी चरण सिंह और अजित सिंह ने टिकाऊ राजनीति नहीं की। इसीलिए क्षेत्र विकास में पिछड़ गया। वे पूरे क्षेत्र में मायावती और मोदी की टक्कर मानते हैं। थिरोट से थोड़ा आगे कल्याणपुर में चौपाल सजी है। आठ-दस लोग चुनावी चर्चा में मशगूल हैं। बुजुर्ग जगत सिंह बिना लाग लपेट के कहते हैं, यहां जाट और ब्राह्मण बराबर तादाद में हैं, हमेशा साथ रहते हैं।

थोड़े दलित और मुसलमान भी हैं। आपसी रिश्ते ऐसे हैं कि चुनाव में कोई बाहर नहीं जाता। वे चौ.अजित की बड़ी जीत का दावा करते हैं। इसी गांव के अशोक, राजवीर सिंह नेक, कपिल चोबला, मोहित सारण चिंदौड़ी और सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि वे कई गांवों का दौरा कर चुके हैं। आरक्षण के बाद माहौल बदला है।

बुजुर्गों के पीछे चलते हैं युवा

ऐतिहासिक पुरेश्वर महादेव मंदिर के बाहर पुरा महादेव गांव के कई लोग बैठे हुए हैं। चर्चा छिड़ते ही प्रेम मलिक कहते हैं कि यहां तो जाटों के साथ मुसलमान भी अजित को वोट करते हैं। युवा सचिन कहता है, बुजुर्ग ही अजित के साथ हैं।

इस पर दूसरा नौजवान कहता है, हम बड़ों के पीछे चलते हैं। सबकी टोकाटाकी में सचिन अकेले पड़ जाते हैं। राकेश सभी के तर्कों को काटते हुए कहते हैं, जब यादव मुलायम को, दलित मायावती को वोट करते हैं तो हम अजित को क्यों न करें?

मलिक गन्ना मूल्य भुगतान न मिलने का दर्द बयां करते हैं। कहते हैं, रालोद के अलावा इस मुद्दे पर किसने साथ दिया है?

यादव बेल्ट में साइकिल की सवारी

मेरठ-बागपत रोड पर बालैनी यादवों का कस्बानुमा गांव है। मेन रोड पर गन्ना लदी दो ट्रैक्टर-ट्रॉलियां खड़ी हैं। सामने राजपाल यादव का मकान है। चुनावी माहौल के बारे में पूछने पर कहते हैं- हमारे यादवों (देशवाल गोत्र) के 12 गांव हैं। हम प्रत्याशी को नहीं, सपा को वोट दे रहे हैं।

डौलचा में बिरादरी की पंचायत में एकजुट होकर वोट देने पर जोर दिया गया। पर, राजपाल कहते हैं मुलायम सिंह को चीनी मिलों पर सख्ती करनी चाहिए। गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हो रहा। कर्ज लेकर खर्चे चलाने पड़ रहे हैं।

अमीनगर सराय कस्बे में बिनौली स्टैंड चौराहे पर इरशाद मलिक की दुकान में कई मुस्लिम बैठे हुए हैं। तिलपनी के प्रधान गुलफराज खां कहते है, मुकाबला अजित और गुलाम मोहम्मद के बीच है।

सत्यपाल सिंह भी अजीत सिंह को हरा सकते हैं?

बड़ौत विवाह मंडप एसोसिएशन के महामंत्री वरदान जैन 20 मार्च को फिल्म अभिनेता सनी देओल के रोड शो और सभा को बागपत की राजनीति का टर्निंग पॉइंट मानते हैं। कहते हैं, इससे भाजपा को बड़ा बल मिला है।

वैश्यों का रुझान भाजपा की तरफ है। सत्यपाल सिंह शिक्षित हैं। लोगों के मन में मोदी है, उन्हें लगता है कि 1998 में सोमपाल शास्त्री की तरह सत्यपाल सिंह भी अजित सिंह को हरा सकते हैं।

जनता वैदिक डिग्री कॉलेज बड़ौत के प्राचार्य डॉ. यशवीर सिंह लंबे समय से इलाके से जुड़े हैं। कहते हैं, इस बार माहौल अलग है। मोदी फैक्टर है तो मुजफ्फनगर दंगों का भी असर।

पैराशूट कल्चर पसंद नहीं

आभा और सादगी के आधार पर कुछ लोग डॉ. सत्यपाल सिंह में संभावना तलाश रहे हैं। वह उसी जाति से हैं जिससे अजित सिंह। पर सादगी और आभा में अजित भी कम नहीं। इस क्षेत्र में जाट आरक्षण के बाद सोच में फर्क महसूस किया जा रहा है।

बावली गांव में सर्वोदय मंदिर इंटर कॉलेज में फिजिकल एजूकेशन के टीचर और यूपी की स्कूल कबड्डी टीम के कोच ककोर निवासी बलवान सिंह कहते हैं कि यदि सत्यपाल की जगह भाजपा का कोई दूसरा प्रत्याशी होता तो चुनाव जीत जाता।

तर्क देते हैं कि नौकरशाही से राजनीति में आने वाले ब्यूरोक्रेटिक माइंडसेट से बाहर नहीं निकल पाते। चौगामा खाप के चौधरी कृषिपाल सिंह निरपुड़ा कहते हैं कि बागपत जिले की तीनों विधानसभा सीटों का मिजाज अलग-अलग है।

जाटों को भविष्य में लाभ मिलेगा?

बड़ौत और छपरौली जाटों से ज्यादा असर वाले इलाके हैं। चौगामा क्षेत्र मुजफ्फरनगर की सीमा से लगा है। यहां के लोग चुनाव में उनसे व्यक्तिगत नाराजगी को तरजीह नहीं देते।

वह कहते हैं कि मुजफ्फरनगर में कुछ घटनाएं स्वाभाविक रूप में हुईं लेकिन बाद में इन पर सियासत करने वालों ने राजनीति खेली। वह मानते हैं कि जाट आरक्षण से छोटी जोत वाले जाटों को भविष्य में लाभ मिलेगा।

अब सवाल यह है कि मैदान में उतरे रालोद से अजित सिंह, भाजपा से सत्यपाल सिंह, सपा वे गुलाम मोहम्मद, बीएस और आप से पीप्रशांत चौधरी, सोमेंद्र ढाका की जातीय रणनीति कामयाब हो सकेगी?

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