शुक्रवार, मार्च 07, 2014

अब बिना किस और स्मूच के बात नहीं बनती

अब स्वीकार्य कर लिए गए चुंबन

यूं तो रुपहले पर्दे पर चुंबन अब कोई बहुत अनोखी चीज नहीं रहा, लेकिन इसे लेकर दर्शकों में जिज्ञासा हमेशा रहती है। मान लिया गया है कि वक्त बदलने के साथ चुंबन दृश्य स्वीकार लिए गए हैं। लेकिन यह बहस का विषय है कि स्वीकार्यता कितनी है।

हाल में निर्माता-निर्देशक करन जौहर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कह कर इस बहस को हवा दी है कि ‘फिल्म में किसिंग सीन हों तो�बॉक्स ऑफिस पर अच्छी ओपनिंग मिल जाती है। आजकल के हीरो-हीरोइनों को चुंबन दृश्य करने में कोई परहेज नहीं है।’

आलिया का भी किस सीन चर्चाओं में

करन शायद बहुत ज्यादा गलत नहीं हैं।�दूर न जाएं। अर्जुन कपूर और अलिया भट्टकी फिल्म ‘टू स्टेट्स’ का ट्रेलर रिलीज हो चुका है और दोनों के चुंबन दृश्य चर्चा में आ गए हैं। वैसे इनकी चर्चा की वजह इनका केवल ‘हॉट’ होना नहीं, दोनों के निजी जीवन में रिश्ते में भी हैं। प्रेम की चर्चाओं के बीच लोग पर्दे के चुंबनों को सच मान बैठते हैं।

वैसे करन की यह बात भी विचार करने लायक है कि की आज ‘किसिंग सीन’ नई पीढ़ी (न्यू-जेन) में आपत्तिजनक भावनाएं पैदा नहीं करते। नई पीढ़ी प्यार की इस अभिव्यक्ति को लेकर बहुत ‘कूल’ है। किसिंग न्यू-जेन का मंत्र है! करन मानते हैं कि पहले के अभिनेता लोक-लाज रखते थे। आज ऐसा नहीं है। किसिंग को समाज में रिश्तों का अहम हिस्सा मान लिया गया है। अगर इन्हें सही ढंग से फिल्माया जाए तो किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए।
 

चुंबन है जरूरत

कभी राज कपूर के वारिस कहलाने वाले सुभाष घई के खयाल भी कुछ इसी तरह के हैं। उनका मानना है,‘चुंबन प्यार जाहिर करने का एक तरीका है। आज का समय तरक्कीपसंद है। लोग और समाज बहुत आगे बढ़ चुके�हैं। फिल्मों में ‘किसिंग’ कोई राकेट साइंस नहीं है।

आज की ग्लोबल लाइफ-स्टाइल में किसिंग को बुरी नजर से नहीं देखा जा सकता। यह अगर सिनेमा और कहानी को आगे बढ़ाते हैं तो इसमें कोई बुरी बात नहीं।’कॉमर्शियल सिनेमा से अलग आर्ट सिनेमा को मायने देने वाले डायरेक्टर शयाम बेनेगल का कहना है, ‘किसिंग को मैं कोई महत्व नहीं देता।�किंतु यदि इस सीन�की डिमांड है तो कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए। 
 

कहां हैं सेंसर बोर्ड

वैसे अगर कोई आपत्ति करे तो सेंसर बोर्ड को इस पर गौर करना चाहिए।’नए ऐक्टरों को ‘किसिंग सीन’ पर आपत्ति नहीं है। आम दर्शकों को लगता है कि ऐसे दृश्य करते हुए ऐक्टरों के बहुत मजे होते हैं। ‘हंसी तो फंसी’ के हीरो सिद्धार्थ मल्होत्रा इसकी हकीकत बताते हैं।

सिद्धार्थ के अनुसार, ‘किसिंग सीन करते वक्त हमारे मन में यही रहता है कि हमें यह परफॉरमेंस ठीक तरह देना है। ज्यादातर ऐक्टर घबराए रहते हैं। ऐक्टिंग करते समय हमें और किसी बात का ध्यान ही नहीं होता।’ वैसे वह इतना जरूर मानते हैं कि जरूरी हो तभी ये सीन रखे जाने चाहिए। जबर्दस्ती तो किसी भी बात की बुरी है।

आज के सिनेमा से इतना तो तय हो चुका है कि प्यार के दृश्यों में अब आप कभी दो फूल, दो भंवरे या दो पक्षी एक-दूसरे की तरफ झुकते हुए नहीं देख सकेंगे।
 

अब ‘गे किस’ भी आ गए चलन में

पर्दे पर चुंबन का एक नया रूप भी इधर दिखने लगा है। हीरो-हीरोइन ही नहीं, हाल के वर्षों में दो हीरो भी एक-दूसरे का ‘किस’ लेते देखे गए हैं। इसकी शुरुआत फिल्म ‘डोन नो वाय... ना जाने क्यूं’ (2010) से हुई थी। जिसमें मामला अदालत तक पहुंचा।

फिल्म इंडस्ट्री और समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले इस मामले को लेकर मुखर हुए। उनका तर्क था कि अब दर्शक इतने ‘समझदार’ हो चुके हैं कि क्या देखना है, क्या नहीं यह जानते हैं।

बड़ी फिल्मों में भी ऐसे किस

वहीं हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर उसकी यादगार स्वरूप बनाई गई फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज’ में रणदीप हूडा और साकिब सलीम एक-दूसरे के होठों को चूमते नजर आए। साकिब हीरोइन हुमा कुरैशी के भाई हैं। इस फिल्म में चार छोटी कहानियां थीं, जिनमें से करन जौहर द्वारा फिल्माई कहानी में यह चुंबन सीन था। करन के अनुसार एक टेक में यह सीन शूट हुआ।

रणदीप हूडा ने यह सीन करने से पहले अपने पिता को फोन लगा कर इजाजत मांगी थी। पिता ने कहा कि तुम एक ऐक्टर हो। जैसे हत्यारे की भूमिका निभा लेते हो, वैसे ही एक ‘गे’ का रोल निभाने में क्या बुरा है। ऐक्टिंग ही तो है।
 

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