भाजपा में टिकटों की 'फिक्सिंग'
आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी के कई टिकटों का फैसला राज्यों के क्षत्रप कर रहे हैं और उन नामों को केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) में नहीं ले जाया जा रहा है। मध्य प्रदेश के पांच टिकटों का फैसला भी सीईसी में नहीं किया गया। इन सीटों पर नामों का फैसला भोपाल में ही कर लिया गया।
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भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अमर उजाला से बातचीत में खुलासा किया कि पहली सूची में 24 नामों पर तो सीईसी में विचार किया गया, लेकिन बाद के पांच टिकटों को भोपाल में ही ‘फिक्स’ कर लिया गया।
सुषमा स्वराज के उस बयान से भी उस तथ्य की पुष्टि होती है जिसमें उन्होंने जसवंत सिंह के मामले में कहा था कि बाड़मेर सीट को लेकर सीईसी में कोई विचार नहीं किया गया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बाड़मेर का फैसला जयपुर में ही हो गया था। सूत्रों का कहना है कि जसवंत सिंह का नाम मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया ने जयपुर में ही काट दिया था।
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भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अमर उजाला से बातचीत में खुलासा किया कि पहली सूची में 24 नामों पर तो सीईसी में विचार किया गया, लेकिन बाद के पांच टिकटों को भोपाल में ही ‘फिक्स’ कर लिया गया।
सुषमा स्वराज के उस बयान से भी उस तथ्य की पुष्टि होती है जिसमें उन्होंने जसवंत सिंह के मामले में कहा था कि बाड़मेर सीट को लेकर सीईसी में कोई विचार नहीं किया गया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बाड़मेर का फैसला जयपुर में ही हो गया था। सूत्रों का कहना है कि जसवंत सिंह का नाम मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया ने जयपुर में ही काट दिया था।
कुछ टिकटों का फैसला सीईसी में नहीं
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि पहली बैठक में 24 नामों की सूची पेश की गई थी। उस सूची को भी आम सहमति के आधार पर बताया गया था। जबकि क्षेत्रों में उन नामों पर कोई आम सहमति तैयार नहीं की गई थी। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में जब 24 सदस्यों के नाम पेश किए गए तब यह कहा गया था कि पांच सीटों पर नाम विवाद के कारण रोक लिए गए हैं।
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इन पांच सीटों में भोपाल से मुख्यमंत्री लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ना चाहते थे और उनकी अनुपस्थिति में कैलाश जोशी खुद चुनाव लड़ना चाहते थे। मंदसौर से रघुनंदन शर्मा चुनाव लड़ना चाहते थे। सागर से भूपेंद्रसिंह अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे तो मंत्री गोपाल भार्गव अपने बेटे को लड़ाना चाहते थे। वित्तमंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया भी सागर से मैदान में उतरना चाहती थी।
मंदसौर से रघुनंदन शर्मा और लक्ष्मीनारायण पांडे दावेदार थे। बालाघाट से मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी को लड़ाना चाहते थे। खजुराहो से मौजूदा सांसद जितेंद्र प्रताप सिंह बुंदेला का टिकट काटकर नागेंद्र सिंह को देने की योजना थी। इन सभी सीटों पर नागेंद्र सिंह को छोड़ दिया जाए तो सभी दावेदारों के टिकट काटकर नए लोगों को टिकट दे दिए गए। इन नामों का फैसला भोपाल में ही कर लिया गया और पांच लोगों की यह सूची सीईसी में पेश ही नहीं की गई।
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इन पांच सीटों में भोपाल से मुख्यमंत्री लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ना चाहते थे और उनकी अनुपस्थिति में कैलाश जोशी खुद चुनाव लड़ना चाहते थे। मंदसौर से रघुनंदन शर्मा चुनाव लड़ना चाहते थे। सागर से भूपेंद्रसिंह अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे तो मंत्री गोपाल भार्गव अपने बेटे को लड़ाना चाहते थे। वित्तमंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया भी सागर से मैदान में उतरना चाहती थी।
मंदसौर से रघुनंदन शर्मा और लक्ष्मीनारायण पांडे दावेदार थे। बालाघाट से मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी को लड़ाना चाहते थे। खजुराहो से मौजूदा सांसद जितेंद्र प्रताप सिंह बुंदेला का टिकट काटकर नागेंद्र सिंह को देने की योजना थी। इन सभी सीटों पर नागेंद्र सिंह को छोड़ दिया जाए तो सभी दावेदारों के टिकट काटकर नए लोगों को टिकट दे दिए गए। इन नामों का फैसला भोपाल में ही कर लिया गया और पांच लोगों की यह सूची सीईसी में पेश ही नहीं की गई।
जो भी ‘हाईप्रोफाइल’ था, उसका टिकट कटा
मध्य प्रदेश भाजपा में लोकसभा चुनावों के टिकट वितरण का कोई सूत्र निकालें तो यही निकलता है कि जो भी हाईप्रोफाइल था या जिसका कद राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा होने की संभावना थी, उसका टिकट कट गया। टिकट ऐसे अज्ञात लोगों को मिल गया, जो भविष्य में कोई चुनौती पेश नहीं कर सकें। भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। टिकटों के इस वितरण से मध्य प्रदेश में लोकसभा के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव जैसी ऊर्जा लोकसभा चुनावों में भाजपा के कार्यकर्ताओं में नदारद है।
मंदसौर से टिकट मांग रहे रघुनंदन शर्मा ऐसे ही नेता हैं। अप्रैल में उनकी राज्यसभा की अवधि समाप्त हो रही थी। वह लोकसभा की मंदसौर सीट से टिकट मांग रहे थे। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें टिकट देने का भोरासा दिलाया था। वह संघ परिवार और संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। अब टिकट कटने से दुखी हैं।
रघुनंदन शर्मा ने अमर उजाला को बताया, ‘मैंने मंदसौर से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। सबकी सकारात्मक सहमति भी थी। किसी की असमहमति थी, तो कम से कम कारण तो बताना ही था। वे मुझे पहले कह देते तो कम से कम अपमान से तो बच जाता। मैं पहले ही कह देता कि चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लूंगा। मेरे और कार्यकर्ताओं के मन को ठेस नहीं लगती।’
मध्य प्रदेश भाजपा में लोकसभा चुनावों के टिकट वितरण का कोई सूत्र निकालें तो यही निकलता है कि जो भी हाईप्रोफाइल था या जिसका कद राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा होने की संभावना थी, उसका टिकट कट गया। टिकट ऐसे अज्ञात लोगों को मिल गया, जो भविष्य में कोई चुनौती पेश नहीं कर सकें। भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। टिकटों के इस वितरण से मध्य प्रदेश में लोकसभा के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव जैसी ऊर्जा लोकसभा चुनावों में भाजपा के कार्यकर्ताओं में नदारद है।
मंदसौर से टिकट मांग रहे रघुनंदन शर्मा ऐसे ही नेता हैं। अप्रैल में उनकी राज्यसभा की अवधि समाप्त हो रही थी। वह लोकसभा की मंदसौर सीट से टिकट मांग रहे थे। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें टिकट देने का भोरासा दिलाया था। वह संघ परिवार और संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। अब टिकट कटने से दुखी हैं।
रघुनंदन शर्मा ने अमर उजाला को बताया, ‘मैंने मंदसौर से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। सबकी सकारात्मक सहमति भी थी। किसी की असमहमति थी, तो कम से कम कारण तो बताना ही था। वे मुझे पहले कह देते तो कम से कम अपमान से तो बच जाता। मैं पहले ही कह देता कि चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लूंगा। मेरे और कार्यकर्ताओं के मन को ठेस नहीं लगती।’
मंदसौर से टिकट मांग रहे रघुनंदन शर्मा ऐसे ही नेता हैं। अप्रैल में उनकी राज्यसभा की अवधि समाप्त हो रही थी। वह लोकसभा की मंदसौर सीट से टिकट मांग रहे थे। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें टिकट देने का भोरासा दिलाया था। वह संघ परिवार और संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। अब टिकट कटने से दुखी हैं।
रघुनंदन शर्मा ने अमर उजाला को बताया, ‘मैंने मंदसौर से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। सबकी सकारात्मक सहमति भी थी। किसी की असमहमति थी, तो कम से कम कारण तो बताना ही था। वे मुझे पहले कह देते तो कम से कम अपमान से तो बच जाता। मैं पहले ही कह देता कि चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लूंगा। मेरे और कार्यकर्ताओं के मन को ठेस नहीं लगती।’
वरिष्ठ नेताओं को दिखाया बाहर का रास्ता
मंदसौर के भाजपा नेताओं का कहना है कि रघुनंदन शर्मा कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन से आसानी से जीत जाते। वह मंत्री बनते। केंद्र में उनकी स्थिति मजबूत होती। यही बात उनके खिलाफ गई। शर्मा का कहना है, ‘जिस तरह से किया गया, वह कष्टदायक है। लगातार 10-15 दिनों तक मेरा सिंगल नाम होने की खबर लीक की गई। बाद में निर्णय विपरीत किया गया। इस घटना ने मुझे हिला दिया है।’
आरएसएस में कुशल संगठन माने जाने वाले रघुनंदन शर्मा को उस समय प्रदेश उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था जब उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘घोषणावीर’ कह दिया था। वह उमा भारती के करीबी थे और भारतीय जनशक्ति पार्टी में चले गए थे। शर्मा का कहना है, ‘संगठन का काम पहले भी करता रहा हूं। अब फिर करता रहूंगा। न पार्टी छोडूंगा और न किसी दूसरी पार्टी में जाने की योजना है।’
सीधी में गोविंद मिश्रा आहत बैठे हैं। वह बरसों से संघ के नेता रहे हैं। अब पार्टी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें टिकट मिलता तो इंद्रजीत पटेल के मुकाबले ताकतवर उम्मीदवार होते। उनकी बजाय रीति पाठक नाम की अल्पज्ञात नेता को टिकट दिया गया। पार्टी ने कैलाश जोशी और लक्ष्मीनारायण पांडे जैसे दो वरिष्ठ नेताओं को जिस तरह से बाहर का रास्ता दिखाया, वह भी वरिष्ठ नेताओं को आहत कर गया है। रघुनंदन शर्मा का कहना है कि पार्टी में संवाद की कमी और पारदर्शिता का अभाव शुरू हो गया है। इस प्रवृत्ति को बढ़ने से रोकना चाहिए। निर्णय करने की शैली में बदलाव आ रहा है। कार्यकर्ता कारण जानना चाहता है।
मंदसौर के भाजपा नेताओं का कहना है कि रघुनंदन शर्मा कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन से आसानी से जीत जाते। वह मंत्री बनते। केंद्र में उनकी स्थिति मजबूत होती। यही बात उनके खिलाफ गई। शर्मा का कहना है, ‘जिस तरह से किया गया, वह कष्टदायक है। लगातार 10-15 दिनों तक मेरा सिंगल नाम होने की खबर लीक की गई। बाद में निर्णय विपरीत किया गया। इस घटना ने मुझे हिला दिया है।’
आरएसएस में कुशल संगठन माने जाने वाले रघुनंदन शर्मा को उस समय प्रदेश उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था जब उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘घोषणावीर’ कह दिया था। वह उमा भारती के करीबी थे और भारतीय जनशक्ति पार्टी में चले गए थे। शर्मा का कहना है, ‘संगठन का काम पहले भी करता रहा हूं। अब फिर करता रहूंगा। न पार्टी छोडूंगा और न किसी दूसरी पार्टी में जाने की योजना है।’
सीधी में गोविंद मिश्रा आहत बैठे हैं। वह बरसों से संघ के नेता रहे हैं। अब पार्टी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें टिकट मिलता तो इंद्रजीत पटेल के मुकाबले ताकतवर उम्मीदवार होते। उनकी बजाय रीति पाठक नाम की अल्पज्ञात नेता को टिकट दिया गया। पार्टी ने कैलाश जोशी और लक्ष्मीनारायण पांडे जैसे दो वरिष्ठ नेताओं को जिस तरह से बाहर का रास्ता दिखाया, वह भी वरिष्ठ नेताओं को आहत कर गया है। रघुनंदन शर्मा का कहना है कि पार्टी में संवाद की कमी और पारदर्शिता का अभाव शुरू हो गया है। इस प्रवृत्ति को बढ़ने से रोकना चाहिए। निर्णय करने की शैली में बदलाव आ रहा है। कार्यकर्ता कारण जानना चाहता है।
आरएसएस में कुशल संगठन माने जाने वाले रघुनंदन शर्मा को उस समय प्रदेश उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था जब उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘घोषणावीर’ कह दिया था। वह उमा भारती के करीबी थे और भारतीय जनशक्ति पार्टी में चले गए थे। शर्मा का कहना है, ‘संगठन का काम पहले भी करता रहा हूं। अब फिर करता रहूंगा। न पार्टी छोडूंगा और न किसी दूसरी पार्टी में जाने की योजना है।’
सीधी में गोविंद मिश्रा आहत बैठे हैं। वह बरसों से संघ के नेता रहे हैं। अब पार्टी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें टिकट मिलता तो इंद्रजीत पटेल के मुकाबले ताकतवर उम्मीदवार होते। उनकी बजाय रीति पाठक नाम की अल्पज्ञात नेता को टिकट दिया गया। पार्टी ने कैलाश जोशी और लक्ष्मीनारायण पांडे जैसे दो वरिष्ठ नेताओं को जिस तरह से बाहर का रास्ता दिखाया, वह भी वरिष्ठ नेताओं को आहत कर गया है। रघुनंदन शर्मा का कहना है कि पार्टी में संवाद की कमी और पारदर्शिता का अभाव शुरू हो गया है। इस प्रवृत्ति को बढ़ने से रोकना चाहिए। निर्णय करने की शैली में बदलाव आ रहा है। कार्यकर्ता कारण जानना चाहता है।

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