सोमवार, मार्च 24, 2014

समय के साथ सियासत के रंग में रंग गए ये 'हुक्मरान'

लखनऊ, । कभी वे राजा थे लेकिन बदलते वक्त ने उन्हें लोकतंत्र में जनाधार की अहमियत का अहसास कराया। हुकूमत के आदी राजघरानों और रियासतों को जनबल का अहसास हुआ तो राजनीतिक दलों ने इस कुलीन तबके की चमक-धमक पर सियासत के दांव लगाने में कोताही नहीं बरती।
समय के साथ ऐसे 'हुक्मरान' सियासत के रंग में रंग गए। राजनीति की रपटीली राह पर कदम जमाने के लिए यदि उन्होंने सधी चाल चली तो अपने वजूद को लडख़ड़ाने से बचाने के लिए समय-समय पर नयी सियासी बैसाखियां भी आजमाई।
सियासत की राजशाही में एक नहीं कई नाम हैं और करीब सभी दलों के चुनावी रथ पर इनकी सवारी देखी जा सकती है। चुनाव के इस समर में इस बार अपनी विजय सुनिश्चित करने को वे जनता के घर दस्तक देने के लिए निकल भी पड़े हैं। कांग्रेस में अलबत्ता ऐसे 'राजाओं' की संख्या अधिक है लेकिन सपा और भाजपा ने भी इन पर दांव लगाया है।
कीर्ति वर्धन सिंह: गोंडा के मनकापुर राजघराने के उत्तराधिकारी कीर्ति वर्धन सिंह तीसरी बार लोकसभा की देहरी लांघने के लिए मतदाताओं की चौखट पर पहुंचे हैं। इसके लिए उन्होंने साइकिल की सवारी छोड़कर गोंडा में कमल का फूल खिलाने का संकल्प लिया है। यह बात दीगर है कि सपा से उनकी बगावत और पार्टी नेतृत्व के खिलाफ उनके बागी सुरों के कारण अखिलेश सरकार में कृषि मंत्री रहे उनके पिता आनंद सिंह को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा। कीर्ति वर्धन इससे पहले 1998 व 2004 में बतौर सपा उम्मीदवार गोंडा सीट फतह कर चुके हैं। इस सीट पर अपना दबदबा कायम रखने के लिए उन्होंने पिछली बार हाथी की सवारी की लेकिन कामयाब न मिलने पर वह फिर सपा में शामिल हो गए थे।
नूर बानो: रामपुर में कांग्रेस की गतिविधियों के केंद्र रहे नूर महल का तिलिस्म इस बार शहर-ए-जिगर मुरादाबाद में भी दिखेगा। नूर महल की अध्यासी और रामपुर के नवाब घराने की बेगम नूर बानो को कांग्रेस ने इस बार पीतल नगरी मुरादाबाद में पंजे की ताकत का लोहा मनवाने की जिम्मेदारी सौंपी है। लोकसभा में पांच बार रामपुर की नुमाइंदगी करने वाले अपने मरहूम शौहर नवाब सैयद जुल्फिकार अली खां के इंतिकाल के बाद उनकी सियासी विरासत संभालने वाली नूर बानो 1996 व 1999 में रामपुर से सांसद चुनी गई हैं। यह पहला मौका है जब चुनाव लड़ने के लिए उन्हें रामपुर से बाहर कदम रखने पड़े हैं।
काजिम अली खां: बेगम नूर बानो के पुत्र और रामपुर के नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां को कांग्रेस ने इस बार रामपुर से अपना उम्मीदवार बनाया है। काजिम अली खां 1996 में रामपुर की बिलासपुर और 2002 में स्वार टांडा सीट से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी विधायक चुने गए लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर साइकिल की सवारी कर उन्होंने विरोधियों को शिकस्त दी। बाद में वह बसपा में शामिल हो गए लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में वह फिर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर स्वार टांडा से जीते।
रत्ना सिंह: प्रतापगढ़ के कालाकांकर राजघराने को भी सियासत सुहाती रही है। इस राजघराने की राजकुमारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री की बेटी रत्ना सिंह लोकसभा में अपनी चौथी पारी खेलने के लिए बतौर कांग्रेस प्रत्याशी एक बार फिर वोटरों के बीच हैं। वह 1996, 1998 और 2009 के चुनावों में जीत दर्ज कर लोकसभा में प्रतापगढ़ का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
रेवती रमण सिंह: इलाहाबाद के करछना क्षेत्र की बरांव रियासत की भी राजनीति में गहरी पैठ रही है। करछना से आठ बार विधायक और संगम नगरी से दो बार सांसद निर्वाचित होने के बाद बरांव रियासत के कुंवर रेवती रमण सिंह इलाहाबाद सीट पर अपनी हैट्रिक लगाने के लिए एक बार फिर साइकिल दौड़ा रहे हैं।
पक्षालिका सिंह: जालौन की रामपुरा रियासत की राजकुमारी से आगरा के भदावर राजघराने की रानी बनीं पक्षालिका सिंह को समाजवादी पार्टी ने फतेहपुर सीकरी सीट पर साइकिल की रफ्तार को बुलंदियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी है। 2012 के विधानसभा चुनाव में आगरा की खैरागढ़ सीट से सपा उम्मीदवार के तौर पर हारने के बावजूद पार्टी ने उन पर यूं ही नहीं भरोसा जताया है। भदावर राजघराने के वारिस उनके पति महेंद्र अरिदमन सिंह आगरा की बाह विधानसभा क्षेत्र से छह बार विधायक निर्वाचित हो चुके हैं और अखिलेश सरकार में स्टांप एवं पंजीयन मंत्री हैं। जाहिर है कि फतेहपुर सीकरी सीट पर महेंद्र अरिदमन सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।
रतनजीत प्रताप नारायण सिंह: केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और पडरौना की जगदीशगढ़ रियासत के कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह एक बार फिर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए कुशीनगर से कांग्रेस उम्मीदवार हैं। तीन बार पडरौना से कांग्रेस विधायक रहे रतनजीत प्रताप नारायण सिंह ने पिछले लोकसभा चुनाव में कुशीनगर सीट फतह की थी।
अमीता सिंह: कभी बैडमिंटन कोर्ट पर प्रतिद्वंद्वियों को स्मैश से धराशाई करने वाली अमीता सिंह (तब अमीता कुलकर्णी) सुल्तानपुर से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नेट पर कैसे खेलती हैं, यह देखने वाली बात होगी। अमीता ने अमेठी राजघराने के वारिस डॉ. संजय सिंह से विवाह के बाद राजनीति में पदार्पण किया। सुल्तानपुर से लोकसभा सदस्य रहे डॉ. संजय सिंह चूंकि असम से राज्य सभा पहुंच गए हैं, इसलिए कांग्रेस ने इस बार अमीता सिंह को वहां से टिकट दिया है। 2002 में अमीता पहली बार भाजपा के टिकट पर अमेठी सीट से विधायक चुनी गई लेकिन कमल से नाता तोड़कर उन्होंने 2004 के उप चुनाव में इसी सीट पर हाथ के पंजे का लोहा मनवाया। 2007 में वह फिर बतौर कांग्रेस उम्मीदवार यहां से निर्वाचित हुई लेकिन 2012 में उन्हें शिकस्त मिली।

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