सोमवार, मार्च 24, 2014

खतरा: युद्ध हुआ तो 20 दिन से ज्‍यादा नहीं टिक पाएगी हमारी सेना!

नई दिल्‍ली. चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भारतीय सेना हथियारों की कमी से जूझ रही है। यह कमी टैंक, हवाई सुरक्षा इकाई और तोपखाने सहित कई चीजों में है। हालांकि, सेना ने इस मुद्दे पर चुप्‍पी साध रखी है। एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, अगर जबर्दस्‍त युद्ध जैसी कोई स्थिति पैदा होती है तो उससे निपटने के लिए सेना के पास महज 20 दिनों के हथियारों का जखीरा ही है। नियमों के मुताबिक, सेना के पास उतने हथियारों के भंडार (वॉर वेस्‍टेज रिजर्व) होने चाहिए कि अगर जबर्दस्‍त युद्ध जैसे हालात पैदा हों तो कम से कम 40 दिनों तक मुकाबला किया जा सके।
 
सेना प्रमुख जरनल बिक्रम सिंह ने हाल में ही कहा था कि अगर हथियारों के लिए उचित बजट सपोर्ट मिलता है तो सेना के पास साल 2015 तक 50 प्रतिशत वॉर वेस्‍टेज रिजर्व होना चाहिए। यानी अभी सेना के पास फिलहाल 50 प्रतिशत वॉर वेस्‍टेज रिजर्व भी नहीं है। अगर इसे साफ शब्‍दों में कहा जाए तो मतलब यह है कि सेना के पास अभी उतने भी हथियार नहीं हैं कि वह जबर्दस्‍त युद्ध जैसी किसी स्थिति में 20 दिनों तक भी मुकाबला कर पाए। माना जा रहा है कि साल 2019 तक ही ऐसा हो पाएगा।
सेना को है अगली सरकार से उम्‍मीद
 
हथियारों की कमी का असर सेना की ऑपरेशनल तैयारियों और ट्रेनिंग पर पड़ रहा है। अब सेना को उम्‍मीद है कि मई में जो नई सरकार बनेगी, वह करीब 20 हजार करोड़ रुपये के हथियारों से जुड़े उसके कार्यक्रम को सपोर्ट करेगी। सेना के लिए यह इसलिए भी जरूरी है कि क्‍योंकि चीन के संभावित खतरे से निपटने के लिए हाल में ही उसने 17वें माउंटेन स्‍ट्राइक कॉर्प्‍स के लिए तैयारी शुरू की है। 90 हजार से ज्‍यादा सैनिकों वाला यह कॉर्प्‍स अगले सात सालों में तैयार हो जाएगा। ऐसा होने के बाद सेना को तोपखानों, वायु सुरक्षा इकाई आदि के अलावा पैदल सैनिकों की 32 नई बटालियन तैयार करनी होगी और इसके लिए पैसों की जरूरत होगी।
 
योजनाएं नहीं चढ़ीं परवान
 
सेना की कई अहम आधुनिक योजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं। इनमें नए होवित्‍जर तोपों, हेलिकॉप्‍टरों और एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों से जुड़ी योजनाएं भी हैं। सेना के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, ऑपरेशनल व ट्रेनिंग जरूरतों और बजट के बीच काफी अंतर है। इसके अलावा आयात और हमारे कारखानों से हथियारों के उत्‍पादन के बीच भी काफी अंतर है।
 हथियारों की कमी का मामला पहले भी उठ चुका है
 
ऐसा पहली बार नहीं है जब सेना के पास हथियारों की कमी का मामला सामने आया है। इससे पहले पूर्व सेना प्रमुख और फिलहाल बीजेपी में शामिल हो चुके जनरल वीके सिंह ने इस मामले को अपने कार्यकाल के दौरान उठाया था। सिंह ने इस बारे में प्रधानमंत्री को गोपनीय चिट्ठी लिखी थी जो मीडिया में सार्वजनिक हो गई थी और इस पर काफी विवाद हुआ था। इस चिट्ठी में सिंह ने कहा था कि सेना के तोपों का गोला-बारूद खत्म हो चुका है। पैदल सेना के पास हथियारों की कमी है। वायुसेना के साजो-समान अपनी ताकत खो चुके हैं। उन्‍होंने लिखा था, हमारी तमाम कोशिशों और रक्षा मंत्रालय के निर्देशों के बावजूद तैयारियां नहीं दिख रही है। मैं यह सूचित करने को मजबूर हूं कि सेना की मौजूदा हालत संतोषजनक स्थिति से कोसों दूर है।
 
बाद में रक्षा मंत्री एके एंटनी ने स्वीकार किया था कि उन्हें जनरल की चिट्ठी की जानकारी है। राज्यसभा में इस मुद्दे पर बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि  सरकार देश की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठा रही है और देश की सैनिक तैयारियां मजबूत हैं।
भारत का रक्षा बजट
 
साल 2014 के लिए भारतीय वित्त मंत्रालय ने रक्षा बजट को कम किया है। इस साल हथियारों की खरीदारी में देरी हो सकती है। रक्षा आवंटन में 10 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी का प्रस्ताव किया है। सुरक्षा के लिए 2,24,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि पिछले बजट में यह राशि 2,03,672 करोड़ रुपये थी।
 
बता दें पिछले साल यानी 2013-14 के लिए वार्षिक बजट में रक्षा के लिए करीब 20 खरब 36 अरब रुपए की राशि दी गई थी, जो भारत के घरेलू उत्पादन मूल्य का 1.8 प्रतिशत ही है। स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान के अनुसार वर्ष 2008 से 2012 तक भारत ने हथियारों की 12 प्रतिशत खेप आयात की है।
 

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