गुरुवार, फ़रवरी 27, 2014

इम्तिहान शहरी 'सेंटरों' पर

लखनऊ। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के पास सारे पत्ते तो नहीं लेकिन अधिकांश जरूर हैं। बहुमत की सरकार, गांव-गिरांव की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव और आधुनिक सोच के साथ चल रहे अखिलेश यादव, तमाम सरकारी योजनाओं की बैसाखी और अपना ही चुनावी मैदान। फिर भी तमाम आशंकाओं के बादल हैं। मुस्लिम वोट बैंक की दुविधा, अन्य पिछड़ों में दूसरे दलों की सेंध और युवाओं का विश्वास हासिल करना उसके लिए चुनौती है। यूपी इस चुनाव में सरकार के कामकाज के नंबर भी देने वाला है, इसलिए पार्टी ने पूरी ताकत सहेजी है और मोदी की रैलियों के जवाब में लगातार रैलियां करके खुद को मजबूत विकल्प के रूप में उभारने की कोशिश भी की है। इसी नजरिए से इस बार शहरी संसदीय क्षेत्रों पर अधिक ध्यान भी है।
उम्मीदवार जल्दी घोषित करना यदि सफलता का पैमाना होता तो सपा ने फिलहाल इसमें बढ़त हासिल की है। यूपी में वह पहला दल है जिसने 80 सीटों में से 77 पर प्रत्याशी तय कर रखे हैं। हालांकि घोषित उम्मीदवारों में भी कुछ पर संशय है। सपा की समस्या अपनी ही बनाई लकीरों से आगे जाने की है। 2004 में इस पार्टी ने सूबे की 39 सीटें हासिल की थी और 26 फीसद से अधिक मत प्रतिशत का मील का पत्थर भी गाड़ा था। इस बार इससे आगे जाने की रणनीति बनाई गई है लेकिन शहरों के वोट फिलहाल समस्या हैं। दिल्ली पर काबिज होने की आस तभी पूरी हो सकती है जब शहरी लोकसभा सीटों पर उसकी जमीन और मजबूत हो क्योंकि ग्रामीण इलाकों के वोटों पर उसकी पकड़ बरकरार हैं। दो साल पहले के विधानसभा चुनाव में इन वोटों ने ही उसे बहुमत दिलाने का काम किया था। तब समाजवादी पार्टी ने अपनी जीती हुई 224 सीटें में से 179 ग्रामीण क्षेत्रों से हासिल की थीं। ग्रामीण इलाकों में उसे 30.44 फीसद वोट और शहरी इलाकों में 25.45 फीसद वोट मिले थे। शहरी समझे जाने वाले इलाकों से उसे महज 45 विधानसभा सीटें मिल पायी थीं। इस बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुफ्त लैपटाप वितरण जैसी योजनाओं के जरिए पार्टी की छवि शहरों में निखारने की कोशिश जरूर की है। लेकिन प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्तियों आदि तमाम नौकरियों का रास्ता साफ न होने से युवाओं का एक बड़ा समूह मायूस भी है।
वस्तुत: शहरी क्षेत्र अगले चुनाव में समाजवादी पार्टी केलिए असली चुनौती साबित होने जा रहे हैं। पार्टी के लिए शहरी वोटों वाले कई संसदीय क्षेत्र चुनावी वाटरलू साबित होते रहे हैं। गाजियाबाद, मेरठ, आगरा, कानपुर, लखनऊ , गोरखपुर, वाराणसी, नोएडा, बरेली आदि सीटों पर जीत दर्ज करने का उसका मंसूबा अब तक पूरा नहीं हो पाया है। समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी दावा करते हैं कि इस बार लोगों का मिथक टूटेगा, समाजवादी पार्टी शहरों में भी जीत का परचम फहरायेगी।

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