हजरत मोहम्मद साहब की गणना उन महापुरुषों में होती है, जिन्होंने मानव मूल्यों के लिए एक नए इतिहास की रचना की। उसे एक नई दिशा व नया आयाम दिया। एक आदर्श समाज की स्थापना की। जिसमें अनेक कबीलों और जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के समान अधिकारों के साथ रह सकें और सम्मानित जीवन व्यतीत कर सकें।
हजरत मोहम्मद (स.) ने अपने अनुकरणीय व्यक्तित्व द्वारा धार्मिक, भौतिक एवं सांसारिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। उनके 23 सालों के अलौकिक जीवन की एक-एक बात एक-एक कर्म, चरित्र एवं आचरण की व्याख्या उनकी शिक्षा, आदेश और फरमानों का विवरण प्रमाणिकता के साथ कुरआन, हदीस जीवनी में संकलित है।
बचपन से ही उनके भीतर ये सभी दिव्य विशेषताएँ मौजूद थीं। 12 रबीउल अव्वल, सोमवार को सन 571 ई, में कुरैश वंश में उनका जन्म हुआ। जिस परिवेश में उनका जन्म हुआ तब का तत्कालीन समाज अत्यंत अधर्मी और दुष्ट था।
कबीले के लोग आपस में लड़ाई-झगड़े करते थे। एक व्यापारी कबीला दूसरे व्यापारी का माल हड़पने और वादे तोडऩे में यकीन रखता था। इन बर्बर समाज के बीच हजरत एक ऐसे शांतिप्रिय व्यक्ति थे, जिन्हें ये हिंसा और अन्याय देखकर दुख होता था। वे अपने कबीलों की लड़ाइयों में मेल-जोल कराने में हमेशा आगे रहते थे। कई बार शांति की तलाश में वे (गारेहिरा) तशरीफ लेे जाते, वहीं उन्हें अंतत: ईश्वरीय प्रेरणा की प्राप्ति हुई।
हजरत मोहम्मद 12 वर्ष की अल्पायु से ही व्यापारिक कार्य में अपने चाचा का हाथ बँटाने लगे थे। जब कुछ बड़े हुए तो दूसरों का माल लेकर सीरिया जाने लगे। लेन-देन में वे इतने सच्चे और खरे थे कि लोग उन्हें मोहम्मद सादिक (सत्यवादी) पुकारा करते थे। दुश्मन तक अपना कीमती माल उनके पास रखवाते थे। उन्होंने कभी किसी का हक नहीं मारा। किसी के साथ दुव्र्यवहार नहीं किया। कभी किसी से कड़वी बात नहीं की। जिन लोगों से भी उनके संबंध होते, वे सब उनकी ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास रखते थे। ४० वर्ष की आयु में अल्लाहतआला ने उन पर ईशदूत का दायित्व सौंपा और 23 सालों में उन पर कुरआन अवतरित किया। कुरआन अवतरण के साथ जब उन्होंने नए धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया तो कबीले के लोगों ने उनका घोर विरोध किया और उन पर तरह-तरह के अत्याचार किए।
लगातार तेरह वर्ष तक उन पर अत्याचार होते रहे। तब वे मक्का से हिजरत करके मदीना चले गए और ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाते रहे। हजरत मोहम्मद का पवित्र संदेश था कि दुनिया में इंसान परिवारों, कबीलों, नस्लों और कौमों में बँटे हुए जरूर हैं और इनके बीच और भी मतभेद हैं। लेकिन सारे संसार के इंसान एक ही हैं, इनके बीच जो विभेद हैं वे अवास्तविक हैं। हजरत मोहम्मद ने एक ऐसी न्याय व्यवस्था की नींव डाली जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को इंसाफ मिलना जरूरी था। किसी को भी नस्ल, जाति, धर्म या धन के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी गई। हजरत मोहम्मद ने औरतों को जीने का हक दिलाया। समाज में उन्हें सम्मानजनक मुकाम दिलाया। उनको खानदान की मलिका करार दिया। उनकी शिक्षा की महानता बताई। हजरत मोहम्मद ने फरमाया, जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें अच्छी तालीम व तर्बियत देकर उनकी शादी कर दी और उनसे अच्छा सुलूक किया, उसके लिए जन्नत के द्वार खुलें हैं।
प्रस्तुति
गजाला खानहजरत मोहम्मद (स.) ने अपने अनुकरणीय व्यक्तित्व द्वारा धार्मिक, भौतिक एवं सांसारिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। उनके 23 सालों के अलौकिक जीवन की एक-एक बात एक-एक कर्म, चरित्र एवं आचरण की व्याख्या उनकी शिक्षा, आदेश और फरमानों का विवरण प्रमाणिकता के साथ कुरआन, हदीस जीवनी में संकलित है।
बचपन से ही उनके भीतर ये सभी दिव्य विशेषताएँ मौजूद थीं। 12 रबीउल अव्वल, सोमवार को सन 571 ई, में कुरैश वंश में उनका जन्म हुआ। जिस परिवेश में उनका जन्म हुआ तब का तत्कालीन समाज अत्यंत अधर्मी और दुष्ट था।
कबीले के लोग आपस में लड़ाई-झगड़े करते थे। एक व्यापारी कबीला दूसरे व्यापारी का माल हड़पने और वादे तोडऩे में यकीन रखता था। इन बर्बर समाज के बीच हजरत एक ऐसे शांतिप्रिय व्यक्ति थे, जिन्हें ये हिंसा और अन्याय देखकर दुख होता था। वे अपने कबीलों की लड़ाइयों में मेल-जोल कराने में हमेशा आगे रहते थे। कई बार शांति की तलाश में वे (गारेहिरा) तशरीफ लेे जाते, वहीं उन्हें अंतत: ईश्वरीय प्रेरणा की प्राप्ति हुई।
हजरत मोहम्मद 12 वर्ष की अल्पायु से ही व्यापारिक कार्य में अपने चाचा का हाथ बँटाने लगे थे। जब कुछ बड़े हुए तो दूसरों का माल लेकर सीरिया जाने लगे। लेन-देन में वे इतने सच्चे और खरे थे कि लोग उन्हें मोहम्मद सादिक (सत्यवादी) पुकारा करते थे। दुश्मन तक अपना कीमती माल उनके पास रखवाते थे। उन्होंने कभी किसी का हक नहीं मारा। किसी के साथ दुव्र्यवहार नहीं किया। कभी किसी से कड़वी बात नहीं की। जिन लोगों से भी उनके संबंध होते, वे सब उनकी ईमानदारी पर पूर्ण विश्वास रखते थे। ४० वर्ष की आयु में अल्लाहतआला ने उन पर ईशदूत का दायित्व सौंपा और 23 सालों में उन पर कुरआन अवतरित किया। कुरआन अवतरण के साथ जब उन्होंने नए धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया तो कबीले के लोगों ने उनका घोर विरोध किया और उन पर तरह-तरह के अत्याचार किए।
लगातार तेरह वर्ष तक उन पर अत्याचार होते रहे। तब वे मक्का से हिजरत करके मदीना चले गए और ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाते रहे। हजरत मोहम्मद का पवित्र संदेश था कि दुनिया में इंसान परिवारों, कबीलों, नस्लों और कौमों में बँटे हुए जरूर हैं और इनके बीच और भी मतभेद हैं। लेकिन सारे संसार के इंसान एक ही हैं, इनके बीच जो विभेद हैं वे अवास्तविक हैं। हजरत मोहम्मद ने एक ऐसी न्याय व्यवस्था की नींव डाली जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को इंसाफ मिलना जरूरी था। किसी को भी नस्ल, जाति, धर्म या धन के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी गई। हजरत मोहम्मद ने औरतों को जीने का हक दिलाया। समाज में उन्हें सम्मानजनक मुकाम दिलाया। उनको खानदान की मलिका करार दिया। उनकी शिक्षा की महानता बताई। हजरत मोहम्मद ने फरमाया, जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें अच्छी तालीम व तर्बियत देकर उनकी शादी कर दी और उनसे अच्छा सुलूक किया, उसके लिए जन्नत के द्वार खुलें हैं।
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