शनिवार, अगस्त 13, 2011

नन्हीं सी जान अरवा

नन्ही अरवा
लीबिया - अरवा अब ठीक है लेकिन अब भी हर धमाका उसे डरा देता है। मुझे सिर्फ उसका नाम याद था - अरवा, उम्र छह साल, ये जानकारी नाकाफी थी लेकिन नन्हीं अरवा को मैं भूला नहीं पा रही थी और मुझे उसे ढूंढना ही था। मैंने पिछली बार अरवा को मिस्राता के अल-हिक्मा अस्पताल में स्ट्रेचर पर देखा था. उसके नन्हें जिस्म पर गोली का छर्रा धंस गया था। ये बात 14 अप्रैल की है जब मिस्राता पर गद्दाफी की सेनाएं भारी बमबारी कर रही थीं। अल-हिक्मा के वॉर्डों में गलियारों में लगातार घायलों को लाया जा रहा था। डॉक्टर अहमद राडवान ने जैसे ही अरवा के घाव को छुआ वो दर्द से कराह उठी । एक कामचलाऊ ऑपरेशन रूम में सर्जन अरवा के जिगर से धातू का टुकड़ा निकाल रहा था। उसकी गर्दन में हुए गहरे घाव पर टांके लगाए जा रहे थे।

अरवा की खोज

यहां काफी कुछ बदला है. पहले लोग ऐसी कोई भी जानकारी देने से डरते थे. वे चुप रहना पसंद करते थे। गद्दाफी के राज में आप अपने भाई पर भी भरोसा नहीं कर सकते थे।

अबदुल्ला

चार महीने बाद मैंने अरवा को ढूंढने का इरादा किया. लेकिन सवाल ये था कि उसे खोजा कैसे जाए?

अल-हिक्मा अस्पताल अब बंद हो चुका है. मिस्र से आए डॉक्टर अहमद राडवान वापस लौट गए हैं।

अरवा की खोज में हम मिस्राता के अन्य अस्पतालों में गए, अरवा के बारे में पूछताछ की और भर्ती होने वालों के रिकॉर्ड चेक किए।

एक नर्स ने बताया कि उसे कुछ-कुछ याद आ रहा है लेकिन नाम ध्यान नहीं है. एक डॉक्टर ने कहा कि उन्हें अरवा याद है लेकिन वो तो नौ साल की थी।

ये शायद अरवा नाम की कोई दूसरी लड़की थी जो लगभग उसी समय घायल हुई होगी।

हैरानगी

मुझे नहीं मालूम इसमें कितना वक्त लगेगा। हो सकता जल्दी ही हो...हो सकता है देर लगे...लेकिन गद्दाफी हारेगा जरूर।

खलील अकतैत, अरवा के दादा

उसके बाद हमें एक और घायल अरवा मिली।

लेकिन आखिरकार हमें वो अरवा मोहम्मद बावा मिल गई जिसकी हमें तलाश थी।

अब हमें उसका पूरा नाम पता था।

हम मिस्राता में उस मुहल्ले में पहुंचे जहां बावा समुदाय के लोग रहते थे. हमने एक व्यक्ति से अरवा के बारे में पूछा. ये व्यक्ति अरवा का रिश्तेदार निकला. वो अपनी गाड़ी में बैठा और हमें अरवा के दरवाजे तक ले गया।

हमारा अनुवादक अबदुल्लाह उस सज्जन की फुर्ती से हैरान था।

बाद में अबदुल्लाह ने कहा, ष्यहां काफी कुछ बदला है। पहले लोग ऐसी कोई भी जानकारी देने से डरते थे. वे चुप रहना पसंद करते थे. गद्दाफी के राज में आप अपने भाई पर भी भरोसा नहीं कर सकते थे।

मिल गई अरवा

पहले वो सहमी हुई थी लेकिन बाद में वो सब कुछ भुलाने में सफल रही है। अब अरवा ठीक है. अब तो वो बस खाने-पीने के साथ-साथ मस्त रहना चाहती है।

खलील अकतैत, अरवा के दादाअरवा के घर पर हमारा स्वागत उसके दादा खलील अकतैत ने किया. थोड़ी देर बाद अरवा सामने आई. जीन्स और गुलाबी टी-शर्ट में एक नन्हीं-सी बच्ची, चोटी में गुंथे हुए काले बाल...

दादा जी ने कहा अरवा अब सब भूल चुकी है, पहले वो सहमी हुई थी लेकिन बाद में वो सब कुछ भुलाने में सफल रही है। अब अरवा ठीक है. अब तो वो बस खाने-पीने के साथ-साथ मस्त रहना चाहती है।

लेकिन अरवा के लिए वो ग्रेनेड हमला एक स्थाई याद बन गया है. उसकी गर्दन पर टांकों के निशान हैं।

खलील एकतैत अरवा की टी-शर्ट उठा उसके पेट पर लंबे घाव के निशान दिखाते हैं। ये निशान किसी जिप की तरह लग रहे थे।

अरवा के घर पर भी उसके जिस्म की ही तरह युद्ध के कई निशान थे। सामने वाली दीवार में कई बड़े-बड़े छेद थे।

जब यहां मिसाईल हमला हुआ था तब अरवा बाहर ही खेल रही थी।

खलील ने बताया, वो खुश थी क्योंकि काफी देर बाद बिजली आई थी। यही जानकारी अपनी मां और दादी को देने के लिए वो बाहर भागी थी।

अब अरवा के घाव भर गए हैं। कम से कम जिस्म के घाव. लेकिन जंग अभी खत्म नहीं हुई है। हर दिन धमाकों की आवाज सुनाई देती है और वो डर फिर लौट आता है।

डर लगता है

मैं धमाकों से डर जाती हूं और तुंरत अंदर भाग जाती हूं.

अरवा

अरवा ने हमें बताया, मैं डर जाती हूं. तुंरत अंदर भागती हूं.

रिटायर्ड ट्रक ड्राइवर खलील बताते हैं कि उनके सभी पोते-पोतियां यही करते हैं, ष्जैसे ही बच्चे धमाका की आवाज सुनते हैं, वो श्जंग-जंगश् चिल्लाते हुए घर के अंदर घुस जाते हैं. वो इसलिए डरते हैं कि पहले भी हमारे घर को निशाना बनाया गया है. मेरा तो खून खौल उठता है।

खलील के तीस पोते-पोतियां हैं. वो अरवा और उसके पिता सादिक के साथ बैठे हैं. सादिक लड़ाई के बारे में ताजा जानकारियां दे रहा है।

सादिक ने अपने दो भाईयों के साथ गद्दाफी के खिलाफ हथियार उठा रखे हैं।

बड़े युद्ध की बात कर रहे हैं और अरवा चुप-चाप रेत पर आकार बनाती जा रही है।

अरवा ने स्थानीय मस्जिद में थोड़ी-बहुत अरबी सीखी है और वो स्कूल जाना चाहती है,ष्जब स्कूल दोबारा खुलेंगे, मैं पढ़ना चाहूंगी. मैं पढ़ना-लिखना चाहती हूं।

गद्दाफी के बारे में गाना

लेकिन अरवा के दादा खलील कहते हैं कि इनदिनों कर्नल गद्दाफी काफी-कुछ सिखा रहे हैं, ष्गद्दाफी बच्चों को नई चीजें सिखा रहे हैं - तबाही, मौत और युद्ध के बारे में. वो सबसे बड़ा अध्यापक है।

अरवा ने ये पाठ सीखा और भुगता है. लेकिन जब वो हमारे सवालों का रुक-रुक जवाब देती है तो वो किसी आम छह वर्षीय बच्ची की तरह ही लगती है।

उसे अपने बहन-भाईयों के साथ खेलना अच्छा लगता है. वो अपने चाचा के खेतों में भेड़ों को चारा खिलाना पसंद करती है. उसे साईकिल चाहिए।

और हां, अरवा बड़ी होकर गायक बनना चाहती है।

अपने दादा के कहने पर अरवा गद्दाफी के बारे में एक गाना गुनगुनाना शुरू करती है -

गद्दाफी हार गया है, उसके बाल अजीब हैं...

और हां उनमें जुएं भी हैं...

जाओ, गद्दाफी और उसके बेटों को बताओ..

मिस्राता में हैं असली मर्द..

तुम टैंक लेकर आओगे...

हम तुम्हें चीनी कारों से हराएंगे

अरवा के इलाके से कर्नल गद्दाफी की सेनाओं को खदेड़ा जा चुका है. लेकिन मिस्राता अब भी गद्दाफी के रॉकेटों के दायरे में है. और अरवा पर से खतरा टला नहीं है।

पैंसठ साल के खलील अपने बारे में नहीं अपने कुन्बे के भविष्य के बारे में चिंतित हैं, मुझे उम्मीद है कि बच्चों को बेहतर जिंदगी मिलेगी। खलील को यकीन है कि जब बड़े अध्यापक यानि गद्दाफी को खदेड़ दिया जाएगा तब अरवा की पीढ़ी जंग से आजादी की ओर बढ़ेगी। खलील कहते हैं, मुझे नहीं मालूम इसमें कितना वकत लगेगा। हो सकता जल्दी ही हो...हो सकता है देर लगे...लेकिन गद्दाफी हारेगा जरूर।
 
 

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