इस समय भले ही हिंदू और मुस्लिम अयोध्या मसले के फैसले को लेकर तनाव महसूस कर रहे हों। दंगों की आशंका से देश भीतर ही भीतर सहमा हुआ हो, हिंदू हो या मुस्लिम अभी सभी इस चिंता में हैं कि कल क्या होगा जब हाईकोर्ट अयोध्या मसले पर अपना फैसला सुनाएगी। लेकिन इसी देश में ऐसे संत भी हुए हैं जिन्होंने इन दो धर्मों के लोगों को जोड़कर रखा। हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्गों ने इन्हें पूरा सम्मान दिया और आज भी ये उतने ही पूजे जाते हैं। आज भी लोग इनसे मन्नते मांगते हैं और बिना भेदभाव इनकी पूजा भी करते हैं।
समाधि और मजार दोनों हैं संत कबीर की
सन् 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा को एक अद्भूत व्यक्ति का जन्म हुआ जिसका नाम पड़ा कबीर। कबीर ने प्रारंभ से ही हिंदू-मुस्लिम के कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। इन्होंने समाज से ऐसी कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया जो लोगों को अलग-अलग करती थीं। अपनी ऐसी विचाराधारा के कारण ही कबीर हिंदू और मुस्लिम सहित सभी धर्मों के लिए आदरणीय और पूजनीय बन गए। उन्होंने 119 वर्ष की आयु में मगहर में देह त्याग किया। कबीर के संबंध में कुछ लोगों का मानना है कि वे मुस्लिम थे और कुछ लोग कहते हैं कि वे हिंदू थे। इसी विवाद के चलते उनके मरणोपरांत उनकी समाधि और मजार दोनों बनाई गई हैं। कबीर दोनों ही धर्मों की आस्था का केंद्र है।
सभी धर्मों की श्रद्धा का केंद्र सांई बाबा
सांई बाबा एक ऐसे संत या फकीर हुए हैं जिन्हें सभी धर्मों में समान रूप से पूजा जाता है। सांई बाबा का जीवनकाल सन् 1835 से सन् 1918 के मध्य माना जाता है। इनका जीवन महाराष्ट्र के शिर्डी में बीता। सांई बाबा ने समाज के हर वर्ग को समान रूप से प्रेम दिया। उनकी नजर में कोई जातपात नहीं थी और सभी धर्म एक समान थे। इसी वजह से उनका मूल मंत्र श्सबका मालिक एक्य है। सांई बाबा का मंत्र ही बताता है कि सभी धर्मों और जातियों का भगवान एक ही है।
सभी का विश्वास है ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर धर्म के लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ सिर झुकाते हैं। यह एक ऐसा स्थान है जहां हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक हर समय देखी जा सकती है। ख्वाजा मोइनुद्दीन का पूरा जीवन समाज कल्याण और कुरितियों को दूर करने में बीता। इसी वजह से अजमेर शरीफ को हर धर्म के लोग मानते हैं।
हाजी अली यहां सभी है एक समान
मुंबई के वर्ली तट पर एक टापू पर स्थित हाजी अली की दरगाह पर हर धर्म की पूरी आस्था है। हाजी अली की दरगाह सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन् 1431 में बनाया गया। ऐसा माना जाता है कि हाजी अली उज्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से पूरी दुनिया का भ्रमण किया और भारत पहुंचे। यहां उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए और लोगों के मन में सभी धर्म के लोगों के लिए प्रेम और भाईचारा बढ़ाया। इनके जनकल्याणकारी कार्यों के कारण भारत के सभी प्रांतों में इनकी ख्याति हैं और इन्हें पूजा जाता है। हाजी अली की मृत्यु के लगभग 90 वर्षों के बाद भी लोगों द्वारा इनके चमत्कारों की बात की जाती है।
रसखान जन्म से मुस्लिम, भक्ति श्रीकृष्ण की
श्रीकृष्ण के परम भक्तों में से एक रसखान के प्रति हिंदू और मुस्लिम दोनों ही आदर और सम्मान रखते हैं। श्रीकृष्ण के प्रति इनकी भक्ति की कोई सीमा नहीं थी। रसखान ने सगुण और निर्गुण दोनों की रूपों में श्रीकृष्ण को पूजा। रसखान जन्म से मुस्लिम थे परंतु उनकी श्रीकृष्ण के प्रति अंध श्रद्धा-भक्ति थी। रसखान का नाम मुस्लिम हरिभक्तों में सर्वोपरि माना जाता है। सय्यद इब्राहीम रसखान का जन्म सन् 1533 से 1558 के बीच माना जाता है। वे बादशाह अकबर के समकालिन थे।
सभी मनुष्य ईश्वर की संतानरू संत तुकाराम
जाति और वर्णव्यवस्था की कुरितियों को दूर करने वाले संतों में तुकाराम का नाम अमर है। संत तुकाराम ने कहा है कि सभी मनुष्य परमपिता ईश्वर की ही संतान है अतरू सभी एक समान है। सभी को प्रेम और भाईचारे के साथ रहना चाहिए। संत तुकाराम ने सभी धर्म और जाति के लोगों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया।
रचनाओं से कुरितियों पर प्रहार किया रविदास ने
जब भारत में जातपात और धर्म के नाम समाज में कई कुरितियां व्याप्त हुई उस समय संत रविदास का जन्म हुआ। रविदास का जन्म काशी में एक चर्मकार कुल में हुआ। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी बताया जाता है। रविदास का पैतृक व्यवसाय जूते बनाने का था। उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। रविदास ने कार्य के साथ-साथ साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया और समाज में फैली कुरितियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।
1 टिप्पणी:
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आपकी चर्चा है यहाँ भी ......
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